अ-शुभ

वीरेन्द्र बहादुर सिंह  (अंक: 241, नवम्बर द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

‘दुख के साथ सभी को सूचित करना पड़ रहा है कि शांतिलाल की आज मौत हो गई है। अंतिम यात्रा का समय अभी तय नहीं हुआ है। पर सम्भव हो तो आज शाम साढ़े सात बजे उनके घर आने की कृपा करें। उनकी पत्नी को हृदय रोग है, इसलिए उन्हें यह बात बताई नहीं गई है। इसलिए कृपा कर के उन्हें फोन मत कीजिएगा और दिए गए समय से पहले आने की कृपा भी मत कीजिएगा। 
नोट: शांतिलाल के सभी शुभचिंतक, सगे-सम्बन्धी इस सूचना पर ध्यान दें।’ 

दोपहर के लगभग तीन बजे ह्वाट्सएप पर आया यह मैसेज कुछ अजीब था। यह मैसेज देखने के बाद कुछ लोगों को निःसंतान अकेले रहने वाले इस बूढ़े दंपती पर बहुत दया आई। दो-चार लोगों ने तो—न जाने का क्या बहाना बनाना जाए, यह तय भी कर लिया। फिर मन में आया कि बहाना बनाएँगे किससे? शांतिलाल तो रहे नहीं, तो अब जाने की ज़रूरत ही क्या है? कुछ लोगों को चिंता हुई कि इस उम्र में शांतिलाल के बग़ैर उनकी पत्नी सविता अकेली कैसे ज़िन्दगी बिताएँगीं? थोड़ी देर में कालोनी की गली के ग्रुप में भी यह मैसेज आया। इसके बाद दो-चार पड़ोसियों ने घर की गैलरी से झाँका। पर कोई हलचल दिखाई नहीं दी। एक-दो लोग तो बिना किसी वजह के शांतिलाल के घर के बाहर भी चक्कर लगा आए। पर वहाँ उन्हें कोई हलचल दिखाई नहीं दी। दो-चार उत्साहियों ने मना करने के बावजूद केवल ख़बर लेने के बहाने सविता को फोन कर ही दिया। 

साढ़े 7 बजे एक-एक कर के लोग शांतिलाल के घर इकट्ठा होने लगे। घर के बाहर कुछ कुर्सियाँ रखी थीं। सविता गुमसुम बैठी थी। बाहर से आने वाले कुछ रिश्तेदार सविता को पकड़ कर रोने लगे तो उन्होंने पूछा, “क्या हुआ?” 

सविता को आघात न लगे, इस तरह धीरे से उन लोगों ने शांतिलाल के बारे में मिली ख़बर उन्हें बताई तो वह खिलखिला कर हँस पड़ीं। लोगों को लगा कि पति की मौत का इन्हें गहरा आघात लगा है। लेकिन वहाँ आए लोगों को पता तब लगा, जब शांतिलाल घर के अंदर से बाहर आए। 

सभी को बाहर रखी कुर्सियों पर बैठाते हुए शांतिलाल ने कहा, “थोड़ा ख़राब तो था, पर ज़रूरी था। यह जानने के लिए कि हमारे सम्बन्ध कितने जीवंत हैं। बुरे दिनों में मुझसे कैसे हो न पूछने वाले भी यहाँ दिखाई दे रहे हैं। अच्छा ही हुआ, अगर मैं मर जाता तो आप लोग आते तो वह किस काम का होता? पिछले दो महीने में हमारे मोबाइल पर मात्र तीन फोन आए और आज मना करने के बावजूद केवल ख़बर लेने के लिए 18 फोन आए। सभी ने केवल ख़बर पूछ कर फोन रख दिया। अगर आप लोग कभी-कभार इसी तरह फोन कर लिया करें तो . . .? बात आप लोगों को हैरान करने वाली नहीं है। आप लोग आए, इस के लिए आप लोगों का हृदय से आभार। अब अगर मैं सच में चला जाऊँ और आप लोग नहीं आएँगे, तब भी चलेगा। एम्बुलेंस वाला ले जाएगा। पर जब तक जी रहे हैं, कभी आ कर या फोन कर के अहसास तो कराते रहें कि हम सच में जी रहे हैं।”

1 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

सांस्कृतिक आलेख
लघुकथा
कविता
सामाजिक आलेख
ऐतिहासिक
कहानी
सिनेमा चर्चा
साहित्यिक आलेख
ललित कला
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
किशोर साहित्य कहानी
सिनेमा और साहित्य
पुस्तक चर्चा
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में