राजा ही सबसे बड़ा भिखारी
वीरेन्द्र बहादुर सिंह
एक फ़क़ीर ने अपना पूरा जीवन एक मंदिर के सामने बैठ कर बिता दिया था। मंदिर में दर्शन करने के लिए आने–जाने वाले लोग उसे कुछ न कुछ दान देते रहते थे। फ़क़ीर ने कभी किसी से कुछ माँगा नहीं था, इसीलिए लोग उसे और अधिक दान देते थे। फ़क़ीर का कोई विशेष ख़र्च नहीं था, इसलिए मिला हुआ धन वह जमा करता गया।
समय बीतता गया और फ़क़ीर बूढ़ा हो गया। उसे लगा कि अब मौत निकट है और इतने सालों में मिला दान लगभग पूरी झोपड़ी में भर गया है। अब इतने धन का किया क्या जाए? तब उसने निश्चय किया कि इस संसार में जो सबसे बड़ा ग़रीब होगा, वह उसी को यह सारा धन दे देगा, ताकि उसकी ग़रीबी दूर हो सके।
भिखारियों को जब फ़क़ीर के इस निर्णय की ख़बर का पता चला तो उन्हें लगा कि वे फ़क़ीर के यहाँ जाएँगे उन्हें फ़क़ीर से कुछ धन मिलेगा। इसलिए वे सब भाग कर उसके पास आने लगे। हर भिखारी उससे यही कहता था कि इस दुनिया में सबसे ग़रीब वही है। धन के लालच में धनवान लोग भी ग़रीब बन कर भिखारी के पास आ रहे थे।
सब की बातें सुन कर फ़क़ीर ने कहा, “नहीं, तुम लोग ग़रीब नहीं हो। असली ग़रीब आदमी तो अभी आया ही नहीं है। वह आएगा, तभी मैं अपनी सारी सम्पत्ति उसे दे दूँगा।”
उसी बीच राजा अपना लाव-लश्कर लेकर वहाँ से गुज़रा। दूर से ही राजा को आते देख कर फ़क़ीर दौड़ता हुआ उनके पास गया और सालों से जमा की गई अपनी सारी सम्पत्ति राजा को समर्पित कर दी। यह देख कर सभी भिखारी और ग़रीब लोग शोर मचाने लगे। उन्होंने फ़क़ीर से कहा, “यह तो हमारे राज्य के राजा हैं, जो सब से धनी व्यक्ति हैं। इन्हें तुम्हारी सम्पत्ति की क्या ज़रूरत है? यही नहीं, राजा को तुम सब से ग़रीब कह कर उनका अपमान भी कर रहे हो। अपमान को भी छोड़ो तो यह हम सभी के साथ अन्याय कर रहे हो, जो उचित नहीं है।”
फ़क़ीर ने भिखारियों से कहा, “तुम लोग तो सामान्य ग़रीब हो, जबकि राजा सब से बड़ा ग़रीब है। अगर तुम्हें थोड़ी भी सम्पत्ति दे दूँगा, तो तुम संतुष्ट हो जाओगे। लेकिन इस राजा को चाहे जितनी भी सम्पत्ति दे दूँ, उसका मन कभी नहीं भरेगा। तुम्हारी धन की प्यास की तो एक सीमा है, लेकिन राजा की धन की प्यास का कोई अंत ही नहीं है? मेरी सम्पत्ति से उसकी थोड़ी-बहुत प्यास कम हो सकती है, बस इतना ही . . .”
फ़क़ीर की बात सुन कर राजा और भिखारी आश्चर्यचकित रह गए। कहा गया है कि जिसकी धन की प्यास अधिक है, वही ग़रीब है।
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