माशा बनी सिंड्रेला की परी

01-10-2025

माशा बनी सिंड्रेला की परी

वीरेन्द्र बहादुर सिंह  (अंक: 285, अक्टूबर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

माशा एक प्यारी, शरारती, और बातूनी लड़की थी। उसे किसी की बात मानना अच्छा नहीं लगता था। वह अपने मन की मालिक थी। वह हर समय कुछ-न-कुछ खेलती और अपने भालू दोस्त को परेशान करती रहती थी। भालू भी अपनी प्यारी दोस्त माशा से बहुत प्यार करता था, इसलिए वह उसकी सारी शरारतें चुपचाप सह लेता था। 

एक दिन माशा अपने घर में खेल रही थी, तभी अचानक उसके दिमाग़ में एक नई शरारत सूझी। उसने अपने दोस्त भालू से पूछा, “भालू, क्या तुम मेरे लिए जिस तरह एक राजकुमारी का महल होता है, उस तरह का महल बना सकते हो?” 

भालू को लगा कि माशा का यह केवल एक खेल होगा, इसलिए वह हँस कर बोला, “हाँ, मेरी प्यारी माशा, मैं तुम्हारे लिए राजकुमारी जैसा महल बना सकता हूँ, लेकिन सही बात तो यह है कि महल बनाना कोई बच्चों का खेल नहीं है।” 

माशा ज़ोर से चिल्ला कर बोली, “तो ठीक है, मैं तुम्हें अपनी जादू की छड़ी देती हूँ। तुम उसकी मदद से महल बनाओ।” 

भालू माशा की इस शरारत पर हँसने लगा। माशा घर के अंदर गई और अपनी आलमारी खोली। उसने सिंड्रेला की एक ड्रेस निकाली और उसे पहन लिया। फिर उसने थोड़ा मेकअप किया और सिंड्रेला की परी की तरह तैयार हो गई। उसके हाथ में एक जादू की छड़ी भी थी। 

वह बाहर आई। भालू अभी भी घर के बाहर बैठा था। माशा ने भालू को देख कहा, “देखो, भालू, मैं सिंड्रेला की परी हूँ। अगर तुम मेरी बात नहीं मानोगे तो मैं तुम्हें चूहा बना दूँगी।” 

भालू ने माशा की बात सुन कर डरने का नाटक किया। क्योंकि उसे पता था कि माशा शरारत कर रही है, इसलिए उसने उसके साथ खेलने का फ़ैसला किया। उसने माशा को गोद में उठा कर कहा, “मेरी प्यारी परी, मुझे तुम्हारा महल ज़रूर बनाऊँगा, इसलिए तुम मुझे माफ़ कर दो।” 

माशा हँस कर बोली, “नहीं भालू, पहले तुम मुझे राजकुमारी की तरह सवारी करा कर सैर कराओगे।”

भालू माशा को अपनी पीठ पर बैठा कर सैर कराने लगा। माशा ख़ुश हो कर ज़ोर-ज़ोर से गाने लगी। यह माशा का एक नया खेल था, जिससे भालू थोड़ा थक गया। तब भालू ने माशा से कहा, “अब बहुत हो गया माशा। महल बनाने का समय हो गया है।” 

माशा ने अपनी जादू की छड़ी घुमा कर और भालू को डराने की कोशिश की। भालू अब परेशान होने लगा था। उसने प्यार से माशा को समझाया, “देखो माशा, मैं जानता हूँ कि तुम खेल रही हो। लेकिन अब हमें कुछ काम करना है।” 

माशा ने भालू की बात न मान कर ज़ोर से हँसने लगी। भालू थक गया था, इसलिए उसे ग़ुस्सा आने लगा था। वह माशा को अपनी पीठ से उतार कर जंगल की ओर चला गया। माशा समझ गई कि भालू को ग़ुस्सा आ गया है। वह भाग कर भालू के पास गई और उससे माफ़ी माँगी। भालू ने उसे गले लगा लिया। फिर दोनों ने मिल कर घर के पास एक छोटा सा महल बनाया और उसमें बहुत देर तक खेलते रहे। 

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