अंतर

वीरेन्द्र बहादुर सिंह  (अंक: 285, अक्टूबर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

शेर का नाम सुनते ही लोमड़ी को दोपहर में भी सर्दी लग गई थी। एक तो वैसे भी राजाजी अभी-अभी ग़ुस्से में थे और . . . 

 

एक घना जंगल था, जिसमें दिन में भी अगर कोई खो जाए तो फिर उसे ढूँढ़ना मुश्किल हो जाता था। 

उस जंगल में सभी तरह के जानवर और पक्षी रहते थे, साथ ही छोटी सी मानव बस्ती भी थी। 

जंगल में तो जंगलराज चलता था। 

जो ताक़तवर होता, वही मज़े करता था। लेकिन चालाक लोमड़ी को कभी ताक़त का उपयोग करना नहीं पड़ता था। वह तो शेर की चापलूसी करके अक्सर अपना पेट भर लेती थी। 

लेकिन इधर उसे तकलीफ़ होने लगी थी। क्योंकि शेर के पैर में काँटा चुभ गया था, इसलिए वह अपनी माँद से बाहर नहीं निकल पा रहा था। लोमड़ी को ही उसके लिए खाने की तलाश में निकलना पड़ता था। एक दिन उसने देखा कि एक कौआ शहर की ओर से उड़ता हुआ आया और एक पेड़ की डाल पर बैठ गया। 

उसकी चोंच में एक पूरी थी। कौआ भी भूखा था, इसलिए उसने पूरी को अपने दोनों पैरों के बीच रख कर खाने की तैयारी शुरू कर दी। यह देख कर लोमड़ी के मुँह में पानी आने लगा कि काश! यह पूरी उसे मिल जाती। 

तभी उसे याद आया कि कौआ प्रशंसा करने से जल्दी ही ख़ुश हो जाते हैं। अगर उसकी थोड़ी तारीफ़़ कर दी जाए तो यह फूल कर पगला जाएगा। इसलिए लोमड़ी ने कौए की तारीफ़़ शुरू कर दी, “वाह कौए भाई! आप कितने शक्तिशाली हैं! आपकी कैसी नुकीली चोंच है और सब से बढ़िया तो आपकी आवाज़ है। आप कितना मीठा गाते हैं। अरे आपके सामने तो मोर और कोयल भी फीके लगते हैं।” 

कौआ सोचने लगा कि क्या सचमुच वह इतना अच्छा गाता है? तभी लोमड़ी ने आगे कहा, “कौए भाई, कितने दिन हो गए आपका कोई गाना सुने? आज एक गाना सुना कर मुझे धन्य कर दो।” 

बस, फिर क्या था! कौए ने तान लेने के लिए एक पैर उठाया तो दोनों पैरों के बीच दबाई पूरी नीचे गिर गई। 

लोमड़ी पूरी को देख रही थी और कौआ लोमड़ी को! 

कौआ सोचने लगा कि अब वह क्या करे? कितनी मेहनत के बाद यह पूरी मिली थी। जिसने भी यह पूरी बनाई थी, उसने कितनी मेहनत से बनाई होगी। कितनी बड़ी पूरी थी। इससे तो उसके दो-तीन दिन आराम से कट जाते। लेकिन हाय रे नसीब। कौवी सच ही कहती थी कि अगर कोई तारीफ़ करे तो ख़ुश होने से पहले सोचना चाहिए कि वह सच कह रहा है या झूठी बातें कह रहा है। तारीफ़ से ख़ुश नहीं होना चाहिए और निंदा से दुखी नहीं होना चाहिए। आज झूठी तारीफ़ से ख़ुश होकर उसने अपना प्यारा भोजन खो दिया! 

इसके बाद कौए को अपनी माँ की बात याद आ गई। माँ कहती थी कि कैसी भी मुसीबत आए, हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। 

कौए ने लोमड़ी से कहा, “जंगल के राजा शेर के पैर में काँटा चुभ गया है, इसलिए वह शिकार के लिए नहीं निकल पा रहे हैं। उन्होंने आज मुझसे अपने लिए भोजन की व्यवस्था करने को कहा था। यह पूरी मैं उन्हीं के लिए लाया था। लेकिन अब मुझे लगता है कि मैं उन्हें यह पूरी नहीं पहुँचा पाऊँगा।” 

शेर का नाम सुन कर लोमड़ी को पसीना छूट गया। वैसे भी राजा जी इन दिनों ग़ुस्से में रहते हैं, ऊपर से अगर उन्हें पता चला कि उनका खाना मैंने चट कर दिया है तो उसकी ख़ैर नहीं होगी। 

पूरी छोड़ कर लोमड़ी अपनी पूँछ उठा कर भाग खड़ी हुई। इसके बाद कौए ने निश्चिंत हो कर पूरी का आनंद लिया। 

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