सामर्थ्य

01-09-2021

सामर्थ्य

राजनन्दन सिंह (अंक: 188, सितम्बर प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

विजय सत्य की नहीं
सामर्थ्य की होती है
और सामर्थ्य
बल बुद्धि विद्या सच्चाई आदर्श
झूठ छल छद्म धोखा द्रोह विद्रोह
किसी में भी हो सकता है।
 
श्रीराम का अपना सामर्थ्य  था
श्रीकृष्ण का भी अपना सामर्थ्य था
एक सामर्थ्य
पुष्यमित्र शुंग में भी था
क्या था? पढ़ो
ग्रंथों में लिखा है
किसकी सफलता में
किसका कितना सत्य था
किसका क्या सामर्थ्य था
 
अपनी सफलता पर 
यदि तुम ज़्यादा इतराते हो
तो तुम भी बताओ
तुझमें तुम्हारा 
अपना कितना सत्य है?
अपना क्या सामर्थ्य है? 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कहानी
सांस्कृतिक आलेख
कविता
किशोर साहित्य कविता
हास्य-व्यंग्य कविता
दोहे
सम्पादकीय प्रतिक्रिया
बाल साहित्य कविता
नज़्म
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में