अव्यवस्था की बहती गंगा

15-06-2021

अव्यवस्था की बहती गंगा

राजनन्दन सिंह (अंक: 183, जून द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

अवसर है
अव्यवस्था की बहती गंगा
नहा रहे हैं लोग
नहा भी क्या रहे हैं 
नहा-नहा कर 
इतरा रहे हैं लोग
जो नहा नहीं पा रहे
किनारे पर डुबकी लगा रहे हैं 
जो डुबकी नहीं लगा पा रहे 
बहती गंगा में 
हाथ ही धो रहे हैं। 
यह खुला अवसर नहीं है 
मगर है सबके लिए। 
मेरे लिए आपके लिए 
इनके लिए उनके लिए
मगर वे जानते हैं
हम इसमें नहाएँगे नहीं
डुबकी नहीं लगाएँगे 
हाथ नहीं धोएँगे
क्योंकि हम वो है ही नहीं 
जिन्हें ये भाता है
और इस तरह
यह खुला अवसर नहीं है 
मगर है सबके लिए। 
हम बदलना चाहते है
अव्यवस्था को व्यवस्था में 
व्यवस्था को सुव्यवस्था में
सुव्यवस्था अवसर नहीं 
अधिकार दिलाती है
सुव्यवस्था में
लूटने की मारामारी नहीं
पाने की बारी आती है

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