विस्तार है नारी
डॉ. शोभा श्रीवास्तव
धरा का रूप है, सौंदर्य है, शृंगार है नारी।
जिसे आकाश ने बख़्शा है, वो विस्तार है नारी॥
जो राहत चाहो तो ममता भरे आँचल तले आओ
सुलगता दौर है ये, प्यार की बौछार है नारी।
जिसे तालीम क़ुदरत से मिली दुनिया को रचने की
उसी क़ुदरत का बन प्रतिबिंब ख़ुद साकार है नारी।
वो गीता है, वो सीता है, वो मरियम है, वो सलमा है
उसे जो नाम दो, बस प्रेम की रसधार है नारी।
बड़ी ख़ूबसूरती से अपने सारे ग़म छुपाती है।
लगे अभिनय में माहिर-सी कोई फ़नकार है नारी।
वो है ख़ामोश तो उसको न कमतर तुम समझ लेना
अगर लाँघोगे जो सीमा तो फिर संहार है नारी।
वही ‘शोभा’ है सृष्टि की, वही माधुर्य जीवन का
टिका है जिसके बल पर छत, वही मीनार है नारी।
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