विस्तार है नारी

15-03-2023

विस्तार है नारी

डॉ. शोभा श्रीवास्तव (अंक: 225, मार्च द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

धरा का रूप है, सौंदर्य है, शृंगार है नारी। 
जिसे आकाश ने बख़्शा है, वो विस्तार है नारी॥
 
जो राहत चाहो तो ममता भरे आँचल तले आओ
सुलगता दौर है ये, प्यार की बौछार है नारी। 
 
जिसे तालीम क़ुदरत से मिली दुनिया को रचने की
उसी क़ुदरत का बन प्रतिबिंब ख़ुद साकार है नारी। 
 
वो गीता है, वो सीता है, वो मरियम है, वो सलमा है
उसे जो नाम दो, बस प्रेम की रसधार है नारी। 
 
बड़ी ख़ूबसूरती से अपने सारे ग़म छुपाती है। 
लगे अभिनय में माहिर-सी कोई फ़नकार है नारी। 

वो है ख़ामोश तो उसको न कमतर तुम समझ लेना
अगर लाँघोगे जो सीमा तो फिर संहार है नारी। 

वही ‘शोभा’ है सृष्टि की, वही माधुर्य जीवन का
टिका है जिसके बल पर छत, वही मीनार है नारी। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

ग़ज़ल
गीत-नवगीत
कविता
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
नज़्म
कविता-मुक्तक
दोहे
सामाजिक आलेख
रचना समीक्षा
साहित्यिक आलेख
बाल साहित्य कविता
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में