ग़वारा करो गर लियाक़त हमारी

15-01-2025

ग़वारा करो गर लियाक़त हमारी

डॉ. शोभा श्रीवास्तव (अंक: 269, जनवरी द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 
122    122    122    122

 

ग़वारा करो गर लियाक़त हमारी। 
तुम्हें सौंप दें हम मोहब्बत हमारी। 
 
वफ़ा तो मेरी रास आई न जिनको, 
वो देखें ज़रा अब अदावत हमारी। 
 
बहुत ख़ुश हो सरताज बनकर वफ़ा के, 
ये दौलत तुम्हारी, बदौलत हमारी। 
 
करेगा भला याद क्या ये जमाना, 
मगर कम न होगी इनायत हमारी। 
 
तमन्ना मुकम्मल तो होगी यक़ीनन, 
सिखाती है हमको ये क़ुल्फ़त हमारी। 
 
भुलाएँगे कैसे भला माँ तुम्हें हम, 
तुम्हारे क़दम ही हैं जन्नत हमारी। 
 
कभी चीज़ कोई सहेजी न तुमने, 
बचाओगे कैसे विरासत हमारी। 
 
तड़पते हैं ख़ुद से तुम्हें दूर करके, 
सज़ा बन गई है वो उज़बत हमारी। 
 
सही जो लगे बस वो करना है ‘शोभा’
करे लाख दुनिया मलामत हमारी।  

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

सजल
ग़ज़ल
गीत-नवगीत
कविता
किशोर साहित्य कविता
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
नज़्म
कविता-मुक्तक
दोहे
सामाजिक आलेख
रचना समीक्षा
साहित्यिक आलेख
बाल साहित्य कविता
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में