धूप इतनी भी नहीं है कि पिघल जाएँगे

15-04-2024

धूप इतनी भी नहीं है कि पिघल जाएँगे

डॉ. शोभा श्रीवास्तव (अंक: 251, अप्रैल द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

2122    2122    1212    22
 
धूप इतनी भी नहीं है कि पिघल जाएँगे। 
राह मुश्किल ही सही हम तो निकल जाएँगे। 
 
मरमरी साया तेरा दीद ए खुलूस सनम, 
थाम लेना तुम अग़र पाँव फिसल जाएँगे। 
 
दिल के काग़ज़ पे तेरा नाम लिखने वाला था, 
क्या ख़बर थी, मेरे मज़मून बदल जाएँगे। 
 
डाल दो चाहे सफ़ीने को तेज़ लहरों में, 
आशना हैं जो हुनर से, वो सँभल जाएँगे। 
 
मेरे हिस्से का कंवल तुम न छीन पाओगे 
रीते हाथों हम नहीं लेके कंवल जाएँगे। 
 
कठिन राहों में बस बेचारगी का आलम है
साथ कुछ दूर चलो तुम तो बहल जाएँगे। 
 
है मुनादी इन दिनों ख़ामुश रहना 'शोभा'
सच कहोगे तुम अगर पत्थर उछल जाएँगे। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

ग़ज़ल
गीत-नवगीत
कविता
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
नज़्म
कविता-मुक्तक
दोहे
सामाजिक आलेख
रचना समीक्षा
साहित्यिक आलेख
बाल साहित्य कविता
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में