जहाँ हम तुम खड़े हैं वह जगह बाज़ार ही तो है

01-07-2024

जहाँ हम तुम खड़े हैं वह जगह बाज़ार ही तो है

डॉ. शोभा श्रीवास्तव (अंक: 256, जुलाई प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

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जहाँ हम तुम खड़े हैं वह जगह बाज़ार ही तो है। 
दिलों का लेना और देना यहाँ व्यापार ही तो है। 

 

लियाक़त से ज़रा माँगो तो दिल क्या जान भी दे दें, 
मुहब्बत के बिना ये दिल सनम बेकार ही तो है। 
 
ज़माने को कभी देखो हमारी भी निगाहों से, 
तुम्हें जो ख़ार दिखता था वो अब गुलज़ार ही तो है। 
 
जहाँ सच की दुकानें हैं, वहाँ बेज़ार गलियाँ हैं, 
कपट बेमोल बिक जाने को अब तैयार ही तो है। 
 
वो क्या है जिसको अपने कर्म से तू पा नहीं सकता, 
तेरी मेहनत, तेरी तक़दीर का मैयार ही तो है। 
 
छिपी रहने दो हर सूरत के पीछे इक नयी सूरत, 
हमारे दौर का हर आदमी फ़नकार ही तो है। 
 
ज़रा कोशिश करो ‘शोभा’ कि बिगड़ी बात बन जाए, 
दिलों के बीच इक मासूम सी तकरार ही तो है। 

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