जहाँ हम तुम खड़े हैं वह जगह बाज़ार ही तो है

01-07-2024

जहाँ हम तुम खड़े हैं वह जगह बाज़ार ही तो है

डॉ. शोभा श्रीवास्तव (अंक: 256, जुलाई प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

1222    1222     1222     1222
 
जहाँ हम तुम खड़े हैं वह जगह बाज़ार ही तो है। 
दिलों का लेना और देना यहाँ व्यापार ही तो है। 

 

लियाक़त से ज़रा माँगो तो दिल क्या जान भी दे दें, 
मुहब्बत के बिना ये दिल सनम बेकार ही तो है। 
 
ज़माने को कभी देखो हमारी भी निगाहों से, 
तुम्हें जो ख़ार दिखता था वो अब गुलज़ार ही तो है। 
 
जहाँ सच की दुकानें हैं, वहाँ बेज़ार गलियाँ हैं, 
कपट बेमोल बिक जाने को अब तैयार ही तो है। 
 
वो क्या है जिसको अपने कर्म से तू पा नहीं सकता, 
तेरी मेहनत, तेरी तक़दीर का मैयार ही तो है। 
 
छिपी रहने दो हर सूरत के पीछे इक नयी सूरत, 
हमारे दौर का हर आदमी फ़नकार ही तो है। 
 
ज़रा कोशिश करो ‘शोभा’ कि बिगड़ी बात बन जाए, 
दिलों के बीच इक मासूम सी तकरार ही तो है। 

1 टिप्पणियाँ

  • 24 Jul, 2025 07:02 AM

    सुंदर रचना ,बहुत खूब. पद्मा मिश्रा-जमशेदपुर

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

ग़ज़ल
सजल
गीत-नवगीत
कविता
किशोर साहित्य कविता
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
नज़्म
कविता-मुक्तक
दोहे
सामाजिक आलेख
रचना समीक्षा
साहित्यिक आलेख
बाल साहित्य कविता
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में