तेरी प्रीत के सपने सजाता हूँ

15-07-2022

तेरी प्रीत के सपने सजाता हूँ

डॉ. शोभा श्रीवास्तव (अंक: 209, जुलाई द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

कभी सागर किनारे रेत के जब घर बनाता हूँ। 
मैं तेरा नाम लिख-लिख कर जाने क्यों मिटाता हूँ
बहा ले जाती है लहरें जो मेरे उस घरौंदे को, 
मैं तेरे नाम वाली रेत मुट्ठी में उठाता हूँ। 
 
बहुत दिलकश है पहले प्यार की ये बारिशों के दिन। 
मचलती धड़कनों वाली हज़ारों ख़्वाहिशों के दिन॥
दुआओं में हो तुम शामिल, तुम्हीं ख़्वाबों, ख़यालों में, 
तुम्हारी याद की बरसात में मैं भीग जाता हूँ। 
 
मेरी हर शाम का नग्मा है सागर की रवानी में। 
हो जैसे बाँसुरी की तान ब्रज वाली कहानी में॥
ये क्यों लगता है जन्मों से तुम्हें पहचानता हूँ मैं
भला बंधन है ये कैसा, नहीं मैं सोच पाता हूँ। 
 
तेरा अहसास मेरी रूह को छूकर गुज़रता है। 
तमन्नाओं का मंज़र तेरी चाहत से सँवरता है॥
फ़कत एक आरजू तेरी है, तेरी जु़स्तजू़ दिल में, 
मैं अब आँखों में तेरी प्रीत के सपने सजाता हूँ॥

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