शौक़ से जाओ मगर
डॉ. शोभा श्रीवास्तव
शौक़ से जाओ मगर घर साँझ लौट आना,
मेरी तरह फ़ानूस को भी आदत है तुम्हारी।
ये शाम, ये हवा, ये परिंदे भी हैं गुमसुम,
ये जान लो कि इनको भी चाहत है तुम्हारी।
काली घटाएँ ज़ुल्फ़ों की हरकत न चुरा लें।
जाते हुए ये पल कहीं फ़ुरसत न चुरा लें॥
तन्हाइयों को भी है तुम्हारा ही इंतज़ार,
गुज़रे ना गुज़ारे कभी फुरक़त है तुम्हारी।
शौक़ से जाओ मगर घर साँझ लौट आना,
मेरी तरह फ़ानूस को भी आदत है तुम्हारी।
गीतों में मेरे नाम तेरा रहता है शामिल।
वादी भी है अनमन सी, नज़र हो रही बोझिल॥
परछाइयाँ भी बच के गुज़रती है आजकल
कुछ इस तरह नज़दीक अब सूरत है तुम्हारी॥
शौक़ से जाओ मगर घर साँझ लौट आना,
मेरी तरह चराग़ों को भी आदत है तुम्हारी।
ये शाम, ये हवा, ये परिंदे भी हैं गुमसुम,
ये जान लो कि इनको भी चाहत है तुम्हारी।
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