रौनक़-ए शाम रो पड़ी कल शब

01-02-2023

रौनक़-ए शाम रो पड़ी कल शब

डॉ. शोभा श्रीवास्तव (अंक: 264, नवम्बर प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

2122    1212    22
 
रौनक़-ए शाम रो पड़ी कल शब। 
याद आई जो आपकी कल शब। 
 
जगमगाती रही शमां घर में, 
दिल में शामिल थी तीरगी कल शब। 
 
जिसकी बरसों तलाश थी मुझको, 
चीज़ आख़िर वो मिल गयी कल शब। 
 
ज़ाम पे ज़ाम न छलका साक़ी, 
थक गई थी ये मयक़शी कल शब। 
 
चाँदनी रात का नज़ारा था, 
झील के पास वो मिली कल शब। 
 
ख़त के मज़मून मिटने वाले थे, 
कर गयी ज़ज़्ब ज़िन्दगी कल शब। 
 
तीरगी है तो रहने दो ‘शोभा’
मिल तो जाएगी रोशनी कल शब। 
 

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