तीरगी सहरा से बस हासिल हुई

15-04-2024

तीरगी सहरा से बस हासिल हुई

डॉ. शोभा श्रीवास्तव (अंक: 251, अप्रैल द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

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तीरगी सहरा से बस हासिल हुई। 
ज़िन्दगी जीने के ना-क़ाबिल हुई॥
 
शाम ठंडी आह भरती रह गयी, 
रात भी मेरे लिये बोझिल हुई। 
 
मैं तेरी बस्ती से पूछूँगा कभी, 
रोशनी क्यों दश्त में शामिल हुई। 
 
चल कहीं हम दूर चल दें ए सनम, 
ये गली अब इश्क़ की क़ातिल हुई। 
 
बज़्म में ‘शोभा’ ठहर जाओ अभी, 
तुमसे ही रंगीन अब महफ़िल हुई। 

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