जल संरक्षण 

01-08-2024

जल संरक्षण 

डॉ. शोभा श्रीवास्तव (अंक: 258, अगस्त प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

जल बिन जग जल जाए न, मनवा अब तो चेत। 
पल-पल धरती दे रही फिर संकट का संकेत॥
बचाओ बूँद बूँद जल, 
सुरक्षित रहे तभी कल
 
बूँद बूँद जल की क़ीमत पूछो तो उसे मरुथल से। 
भरमाती है धूप जहाँ राही को अपने छल से। 
विश्वधरा कम्पित होती है आने वाले पल से। 
जल संकट को देख-देख कर होते नयन सजल से। 
 
सूख न जाए जीवन बग़िया अब तो रहो सचेत
पल-पल धरती दे रही फिर संकट का संकेत॥
बचाओ बूँद बूँद जल, 
सुरक्षित रहे तभी कल
 
पहले तो जनहित में तुमने पौधे कई लगाए। 
स्वार्थ मगन होकर तुमने ही कितने वृक्ष कटाए। 
पेड़ रहित धरती की हालत कौन, किसे समझाए
बिन पेड़ों के अम्बर कैसे जलधारा बरसाए। 
 
वैभव धरती का ख़तरे में, सूखे-सूखे खेत। 
पल-पल धरती दे रही फिर संकट का संकेत॥
बचाओ बूँद बूँद जल, 
सुरक्षित रहे तभी कल
 
समय यही है, आओ मिल कर निज कर्त्तव्य निभाएँ। 
करें जतन कुछ ऐसा, पानी की हर बूँद बचाएँ। 
कल-कल करती नदियाँ हों, धरती की छटा निराली 
सावन की बौछार से छाये जीवन में हरियाली। 
 
जल संरक्षण करना ही अब हम सबका अभिप्रेत। 
पल-पल धरती दे रही फिर संकट का संकेत॥
बचाओ बूँद बूँद जल, 
सुरक्षित रहे तभी कल
 
जल बिन जग जल जाए न, मनवा अब तो चेत। 
पल-पल धरती दे रही फिर संकट का संकेत॥
बचाओ बूँद बूँद जल, 
सुरक्षित रहे तभी कल

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

सजल
ग़ज़ल
गीत-नवगीत
कविता
किशोर साहित्य कविता
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
नज़्म
कविता-मुक्तक
दोहे
सामाजिक आलेख
रचना समीक्षा
साहित्यिक आलेख
बाल साहित्य कविता
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में