अर्श को मैं ज़रूर छू लेती
डॉ. शोभा श्रीवास्तवमिसरा ए सानी: लूटते हैं वो अब उजालों में
बहर: 2122 1212 22
“बाग़ की रौनक-ओ ख़यालों में
तितलियों घिर गयी हो जालों में।
शम्अ को चल कहीं छुपा दें हम,
लूटते हैं वो अब उजालों में॥”
अर्श को मैं ज़रूर छू लेती,
ख़्वाहिशें दब गई रिसालों में।
ढूँढ़ते हो कहाँ जवाब मियाँ,
ज़िन्दगी कट गयी सवालों में।
दो घड़ी में नज़र बदलती है
जाने क्या है समय की चालों में।
ग़लत तो हमसे कुछ नहीं होगा,
हमको रखना न इन बवालों में।
बात ईमान की हो जब ‘शोभा’
नाम तेरा रहे मिसालों में।
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