तारे छत पर तेरी उतरते हैं
डॉ. शोभा श्रीवास्तव
2122 1212 22
तारे छत पर तेरी उतरते हैं।
वो तेरी शोख़ियों पे मरते हैं।
नींद अब रात भर नहीं आती,
याद की रौ से हम गुज़रते हैं।
जबसे आँखों में जगह दी तुमने,
आइने टूट कर बिखरते हैं।
सादगी आपकी क़यामत है,
आपकी सादगी से डरते हैं।
कौन आया कि रंग बिखरा है,
शाख़ से फूल सारे झरते हैं।
छोड़ दो बात अब तो लोगों की,
लोग अब वादे से मुकरते हैं।
अबके बस्ती में चाँद उतरेगा,
हम सितारों से बात करते हैं।
अश्क बन जाते हैं मोती ‘शोभा’
प्यार के नाम पर जो झरते हैं।
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