सच कह रहे हो ये सफ़र आसान है बहुत

15-02-2025

सच कह रहे हो ये सफ़र आसान है बहुत

डॉ. शोभा श्रीवास्तव (अंक: 271, फरवरी द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

बहर: मुज़ारे मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ महज़ूफ़
अरकान: मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
तक़्ती'‌अ: 2212   1211   2212   12
 
सच कह रहे हो ये सफ़र आसान है बहुत
पर क्या करें कि साथ में सामान है बहुत
 
दिल ले लिया अगर मेरा तो अब संभालिये
अरमानों से भरा है तो नादान है बहुत
 
रहबर हो आप सा तो कोई बात ही नहीं
मेरे लिए ये रास्ता अनजान है बहुत
 
यादों की क़र्ज़दार है ये नींद अर्से से
किश्तों में जागने का अब अरमान है बहुत
 
यह घर है आपका सही पर कुछ तो हक़ मिले
वैसे हमारे रहने को दालान है बहुत
 
बदनामियाँ उसी ने दी कहते थे जो सदा
नज़रों में आप के लिए सम्मान है बहुत
 
बादे सबा के रंग वो बदले तो किस तरह
‘शोभा’ चुनौतियों से याँ हैरान है बहुत

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

ग़ज़ल
गीत-नवगीत
कविता
किशोर साहित्य कविता
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
नज़्म
कविता-मुक्तक
दोहे
सामाजिक आलेख
रचना समीक्षा
साहित्यिक आलेख
बाल साहित्य कविता
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में