जगमग करती इस दुनिया में

15-11-2021

जगमग करती इस दुनिया में

डॉ. शोभा श्रीवास्तव (अंक: 193, नवम्बर द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

जगमग करती इस दुनिया में 
भीतर काला-काला क्यों है?
नया-नया है हर मंज़र पर,
लगता देखा-भाला क्यों है?
 
सुबह-सुबह सूरज की लौ से 
अब उम्मीद नहीं जगती है।
साँझ ढले किरणें अलसाई 
बोझिल सी होने लगती है॥
 
चाँद चुरा कर आख़िर किसने,
बेघर किया उजाला क्यों है?
नया-नया है हर मंज़र पर,
लगता देखा-भाला क्यों है?
 
आँखों से विश्वास का झरना,
आस किरण का पलते जाना।
दिल में रहकर दिल को छलना,
और हृदय का जलते जाना॥
 
अँधियारा एक प्रश्न अनुत्तर,
दीप के मुख पर ताला क्यों है?
नया-नया है हर मंज़र पर,
लगता देखा-भाला क्यों है॥
 
जगमग करती इस दुनिया में,
भीतर काला-काला क्यों है?
नया-नया है हर मंज़र पर,
लगता देखा-भाला क्यों है?

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