आपने दर्द-ओ ग़म दिया फिर भी

15-09-2025

आपने दर्द-ओ ग़म दिया फिर भी

डॉ. शोभा श्रीवास्तव (अंक: 284, सितम्बर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

2122    1212।    22
 
आपने दर्द-ओ ग़म दिया फिर भी। 
टूट कर हमने की वफ़ा फिर भी॥
 
चांँद निकला हुआ था अंबर में, 
छा रही थी मगर घटा फिर भी। 
 
आदमी तो अजीब था लेकिन, 
बाअदब मुझको वह दिखा फिर भी। 
 
ज़िंदगानी तो इक कहानी है, 
आपने गीत सा सुना फिर भी। 
 
मैं ज़रूरत थी उम्र भर जिसकी 
वह मुझे छोड़कर गया फिर भी। 
 
आज फिर ख़ुशनुमा नज़ारा था, 
क्यों मगर था वो ग़मज़दा फिर भी। 
 
चल कहीं दूर अब चलें “शोभा”
है कठिन गर ये रास्ता फिर भी। 

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