भुलाने न देंगी जफ़ाएँ तुम्हारी
डॉ. शोभा श्रीवास्तव
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भुलाने न देंगी जफ़ाएँ तुम्हारी।
हवाओं में शामिल सदाएँ तुम्हारी॥
तुम्हारी नज़र का ये कैसा असर है,
ग़ज़ब ढा रही हैं अदाएंँ तुम्हारी।
वफ़ा में जहाँ को भुलाना था मुमकिन,
मगर याद कैसे भुलाएँ तुम्हारी।
मोहब्बत किया ये हमारी ख़ता थी,
मगर कम नहीं थी ख़ताएँ तुम्हारी।
समंदर में सैलाब ठहरा हुआ है,
चलो फिर जफ़ा आजमाएँ तुम्हारी।
शिफ़ा मिल सकी ना तुम्हारे करम से,
बनी बद्दुआ सब दुआएँ तुम्हारी।
न पूछो ये हमसे ये दिल कैसे टूटा,
गिरी बिजलियों सी बलाएँ तुम्हारी।
हवादिस ही था तुमसे दिल का लगाना,
गली क्यों न अब छोड़ जाएँ तुम्हारी।
इजाज़त अगर आपकी हो तो ‘शोभा’
ग़ज़ल बज़्म में हम सुनाएँ तुम्हारी।
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