भुलाने न देंगी जफ़ाएँ तुम्हारी

15-11-2024

भुलाने न देंगी जफ़ाएँ तुम्हारी

डॉ. शोभा श्रीवास्तव (अंक: 265, नवम्बर द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

122    122    122    122

 

भुलाने न देंगी जफ़ाएँ तुम्हारी। 
हवाओं में शामिल सदाएँ तुम्हारी॥
 
तुम्हारी नज़र का ये कैसा असर है, 
ग़ज़ब ढा रही हैं अदाएंँ तुम्हारी। 
 
वफ़ा में जहाँ को भुलाना था मुमकिन, 
मगर याद कैसे भुलाएँ तुम्हारी। 
 
मोहब्बत किया ये हमारी ख़ता थी, 
मगर कम नहीं थी ख़ताएँ तुम्हारी। 
 
समंदर में सैलाब ठहरा हुआ है, 
चलो फिर जफ़ा आजमाएँ तुम्हारी। 
 
शिफ़ा मिल सकी ना तुम्हारे करम से, 
बनी बद्दुआ सब दुआएँ तुम्हारी। 
 
न पूछो ये हमसे ये दिल कैसे टूटा, 
गिरी बिजलियों सी बलाएँ तुम्हारी। 
 
हवादिस ही था तुमसे दिल का लगाना, 
गली क्यों न अब छोड़ जाएँ तुम्हारी। 
 
इजाज़त अगर आपकी हो तो ‘शोभा’
ग़ज़ल बज़्म में हम सुनाएँ तुम्हारी। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

गीत-नवगीत
ग़ज़ल
कविता
किशोर साहित्य कविता
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
नज़्म
कविता-मुक्तक
दोहे
सामाजिक आलेख
रचना समीक्षा
साहित्यिक आलेख
बाल साहित्य कविता
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में