भुलाने न देंगी जफ़ाएँ तुम्हारी
डॉ. शोभा श्रीवास्तव
122 122 122 122
भुलाने न देंगी जफ़ाएँ तुम्हारी।
हवाओं में शामिल सदाएँ तुम्हारी॥
तुम्हारी नज़र का ये कैसा असर है,
ग़ज़ब ढा रही हैं अदाएंँ तुम्हारी।
वफ़ा में जहाँ को भुलाना था मुमकिन,
मगर याद कैसे भुलाएँ तुम्हारी।
मोहब्बत किया ये हमारी ख़ता थी,
मगर कम नहीं थी ख़ताएँ तुम्हारी।
समंदर में सैलाब ठहरा हुआ है,
चलो फिर जफ़ा आजमाएँ तुम्हारी।
शिफ़ा मिल सकी ना तुम्हारे करम से,
बनी बद्दुआ सब दुआएँ तुम्हारी।
न पूछो ये हमसे ये दिल कैसे टूटा,
गिरी बिजलियों सी बलाएँ तुम्हारी।
हवादिस ही था तुमसे दिल का लगाना,
गली क्यों न अब छोड़ जाएँ तुम्हारी।
इजाज़त अगर आपकी हो तो ‘शोभा’
ग़ज़ल बज़्म में हम सुनाएँ तुम्हारी।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- गीत-नवगीत
-
- अधरों की मौन पीर
- आओ बैठो दो पल मेरे पास
- ए सनम सुन मुझे यूँ तनहा छोड़कर न जा
- कोरे काग़ज़ की छाती पर, पीर हृदय की लिख डालें
- गुरु महिमा
- गूँजे जीवन गीत
- चल संगी गाँव चलें
- जगमग करती इस दुनिया में
- जल संरक्षण
- ठूँठ होती आस्था के पात सारे झर गये
- ढूँढ़ रही हूँ अपना बचपन
- तक़दीर का फ़साना लिख देंगे आसमां पर
- तू मधुरिम गीत सुनाए जा
- तेरी प्रीत के सपने सजाता हूँ
- दहके-दहके टेसू, मेरे मन में अगन लगाये
- दीप हथेली में
- धीरज मेरा डोल रहा है
- फगुवाया मौसम गली गली
- बरगद की छाँव
- माँ ममता की मूरत होती, माँ का मान बढ़ाएँगे
- मौन अधर कुछ बोल रहे हैं
- रात इठला के ढलने लगी है
- शौक़ से जाओ मगर
- सावन के झूले
- होली गीत
- ख़ुशी के रंग मल देना सुनो इस बार होली में
- ग़ज़ल
-
- अर्श को मैं ज़रूर छू लेती
- करूँगा क्या मैं अब इस ज़िन्दगी का
- कसमसाती ज़िन्दगी है हर जगह
- किससे शिकवा करें अज़ीयत की
- ख़त फाड़ कर मेरी तरफ़ दिलबर न फेंकिए
- जहाँ हम तुम खड़े हैं वह जगह बाज़ार ही तो है
- डरता है वो कैसे घर से बाहर निकले
- तारे छत पर तेरी उतरते हैं
- तीरगी सहरा से बस हासिल हुई
- तुम्हारी ये अदावत ठीक है क्या
- दर्द को दर्द का एहसास कहाँ होता है
- धूप इतनी भी नहीं है कि पिघल जाएँगे
- नहीं हमको भाती अदावत की दुनिया
- फ़ना हो गये हम दवा करते करते
- फ़िदा वो इस क़दर है आशिक़ी में
- भुलाने न देंगी जफ़ाएँ तुम्हारी
- रात-दिन यूँ बेकली अच्छी है क्या
- रौनक़-ए शाम रो पड़ी कल शब
- वो अगर मेरा हमसफ़र होता
- वफ़ा के तराने सुनाए हज़ारों
- हमें अब मयक़दा म'आब लगे
- ख़ामोशियाँ कहती रहीं सुनता रहा मैं रात भर
- कविता
- किशोर साहित्य कविता
- हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
- नज़्म
- कविता-मुक्तक
- दोहे
- सामाजिक आलेख
- रचना समीक्षा
- साहित्यिक आलेख
- बाल साहित्य कविता
- विडियो
-
- ऑडियो
-