बना देती है सबको कामिल मुहब्बत

01-05-2025

बना देती है सबको कामिल मुहब्बत

डॉ. शोभा श्रीवास्तव (अंक: 276, मई प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

122    122    122    122
 
ज़माने की हर शै में शामिल मुहब्बत।
दिलों के समंदर का साहिल मुहब्बत
 
फ़क़त प्यार के कुछ दिखेगा न तुमको
निगाहों में होने दो दाख़िल मुहब्बत

खुदाया करो ना मुहब्बत को रुसवा
ख़ुदा के करम की है आमिल मुहब्बत
 
वज़ह कुछ तो है प्यार के इस सफ़र में
नहीं सबको होती है हासिल मुहब्बत।
 
ज़फ़ा ने किसी की ज़रा क्या रुलाया
समझने लगे तुम है क़ातिल मुहब्बत
 
गली नफ़रतों की अँधेरे में डूबी
चराग़ों भरी एक महफ़िल मुहब्बत
 
ज़माने में ‘शोभा’  है रौनक वफ़ा से 
बना देती है सबको कामिल मुहब्बत 

आमिल= अमल करने वाला; कामिल= विशेषज्ञ, उस्ताद

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