ख़त फाड़ कर मेरी तरफ़ दिलबर न फेंकिए

15-03-2024

ख़त फाड़ कर मेरी तरफ़ दिलबर न फेंकिए

डॉ. शोभा श्रीवास्तव (अंक: 249, मार्च द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

बहर: 2212    2212    2212    12
 
ख़त फाड़ कर मेरी तरफ़ दिलबर न फेंकिए
ठहरे हुए पानी में यूँ पत्थर न फेंकिए
 
बेकल बनाकर अब मुझे बेख़ुद न कीजिए, 
छूकर लबों से देखिए, साग़र न फेंकिए
 
सा'आत से घबरा के तुम भागोगे कब तलक
ख़ुद ए'तिमादी के सनम जे़वर न फेंकिए
 
गरमी में जिसने आपको दी राहते-फ़ज़ल
दिन बारिशों के देख वो गागर न फेंकिए
 
माँ-बाप की ख़्वाहिश में ‘शोभा’ हम ही थे फ़राज़
उनकी कभी उम्मीद के ग़ौहर न फेंकिए 
 
सा'आत (बहु)= कठिन समय; ख़ुद-एतमादी= आत्मविश्वास; फ़ज़ल= कृपा, मेहरबानी; फ़राज़= ऊँचाई, बुलंदी; ग़ौहर= मोती

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