दीप हथेली में

01-08-2022

दीप हथेली में

डॉ. शोभा श्रीवास्तव (अंक: 210, अगस्त प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

अंगारों पर पाँव पड़े जब-जब भी क़दम बढ़ाया है। 
दर्द-ओ ग़म ने मरहम लेकर ज़ख़्मों को सहलाया है॥
 
चारागर को क्या समझाएँ, जख़्म नहीं क्यों भरते हैं, 
जो भी मिला मसीहा बनकर, उसने नमक लगाया है॥
 
चेहरे बदल-बदल कर मिलना एक नई परिपाटी है, 
मतलब का जो है वह अपना, बाक़ी खेल पराया है॥
 
चाँद चुरा कर लाने वाले, तारों से भी हार गये, 
जुगनू को मुट्ठी में लेकर मन अपना भरमाया है॥
 
लेकर दीप हथेली में बच्चे ने चुनौती क्या दे दी, 
अँधियारा जाने क्यों ख़ुद पर तब बेहद शरमाया है॥
 
सावन की रिमझिम से कह दो आ जाए इस बस्ती में 
सूना पनघट, झांझर चुप है, ख़ामोशी का साया है॥
 
माचिस लेकर घूम रहे हो तो इतना भी जान लो, 
चिंगारी से जो खेलेगा, ख़ुद न कभी बच पाया है॥

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

ग़ज़ल
गीत-नवगीत
कविता
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
नज़्म
कविता-मुक्तक
दोहे
सामाजिक आलेख
रचना समीक्षा
साहित्यिक आलेख
बाल साहित्य कविता
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में