रात इठला के ढलने लगी है
डॉ. शोभा श्रीवास्तवहमसफ़र जब से चंदा हुआ है, रात इठला के ढलने लगी है।
भर के दामन में तारों के मोती, हौले हौले से चलने लगी है॥
हो रहा है मिलन चाँदनी से, सूर्य की पीतवसना किरण का।
हट गया झीना झीना सा बादल साँझ के सुरमई आवरण का।
जैसे अल्हड़ कुँवारे नयन में अनछुई प्रीत पलने लगी है।
भर के दामन में तारों के मोती, हौले हौले से चलने लगी है॥
रात इठला रही है भला क्यों रातरानी भी महकी हुई है।
जुगनुओं की चमक बढ़ रही है, रजनीगंधा भी बहकी हुई है।
किसकी जादू का इतना असर है साँस की लय मचलने लगी है
भर के दामन में तारों के मोती, हौले हौले से चलने लगी है॥
हर तरफ़ रोशनी का सफ़र है मुँह अँधेरे का काला हुआ है।
तुम हो छाए सनम जो हृदय में ज़िन्दगी में उजाला हुआ है।
कसमसाती हुई याद अक़्सर अब तो करवट बदलने लगी है।
भर के दामन में तारों के मोती, हौले हौले से चलने लगी है॥
हमसफ़र जब से चंदा हुआ है, रात इठला के ढलने लगी है।
भर के दामन में तारों के मोती, हौले हौले से चलने लगी है॥
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