ख़ुशनुमा ये चमन हो दुआ कीजिए

01-04-2020

ख़ुशनुमा ये चमन हो दुआ कीजिए

डॉ. शोभा श्रीवास्तव (अंक: 153, अप्रैल प्रथम, 2020 में प्रकाशित)

आजकल गर्मियों का चला दौर है
ख़ुशनुमा ये चमन हो दुआ कीजिए
सूखी-सूखी सी पंखुड़ियाँ कह रही
प्यार के चंद शबनम अता कीजिए

 

ये है तपती हुई जेठ की दोपहर
गर्म मौसम हठीला रुकेगा नहीं
प्रीत के जल में तुम जो भिगो दो मुझे
मन मेरा फिर कभी भी थकेगा नहीं

 

भावना के नये फूल खिलने लगें
फिर वही ठंडी-ठंडी हवा दीजिए

 

चलते-चलते जो पाँवों में छाले हुए
साथ रहते थे मुझको सम्हाले हुए
फिर उन्हीं रास्तों से पड़ा वास्ता
हम उन्हीं मंज़रों के हवाले हुए

 

मेरे रहबर मुझे सूझता कुछ नहीं
हाथ अपने ज़रा फिर बढ़ा दीजिए

 

जानती हूँ कि कठिनाईयाँ हैं बहुत
प्रेमपथ पर जो कोई भी संग-संग चले
धुल ही जाते हैं अश्कों में अक्सर प्रिये
ख़ूबसूरत जो सपने नयन में पले

 

ख़ुद से ज्यादा यक़ीं तुमपे करती हूँ मैं
ऐसा न हो कि मुझको दग़ा दीजिए

 

प्रेम कान्हा के रंग-रूप जैसा ही है
प्रेम में ये हृदय ब्रज का आँगन लगे
प्रेम है राधिका का समर्पण मधुर
प्रेम मीरा के मोहन का दर्पण लगे

 

 धरती-अंबर से बढ़कर भला प्यार को
 और क्या नाम दूँ ये बता दीजिए

 

 आजकल गर्मियों का चला दौर है
 ख़ुशनुमा ये चमन हो दुआ कीजिए
 सूखी-सूखी सी पंखुड़ियाँ कह रहीं
 प्यार के चंद शबनम अता कीजिए

1 टिप्पणियाँ

  • 15 Jul, 2022 08:53 PM

    साहित्य कुंज प्रत्येक अंक की तरह इस अंक में भी एक एक कविता गीत गजल लेख संग्रहित करने लायक हैं पठनीय हैं ज्ञानवर्धक है सभी साहित्य प्रेमियों को विशेष दिया संपादक महोदय को जिन्होंने इतनी खूबसूरत कलेवर के साथ पत्रिका हमारे समक्ष रखें सभी बधाई के पात्र हैं

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