सुर्ख़ लब सा गुलाब कम है क्या

15-05-2025

सुर्ख़ लब सा गुलाब कम है क्या

डॉ. शोभा श्रीवास्तव (अंक: 277, मई द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

बहर: ख़फ़ीफ़ मुसद्दस मख़बून महज़ूफ़ मक़तू
अरकान: फ़ाएलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
तक़्तीअ: 2122    1212    22
 
सुर्ख़ लब सा गुलाब कम है क्या
फिर शफ़क पे शबाब कम है क्या
 
दिल लिया है तो दिल दिया भी है,
प्यार में ये हिसाब कम है क्या।
 
वो इताबों का क़हर ढाते हैं
उनको मेरा जवाब कम है क्या
 
फन उठाना मिजाज है उनका
तो मिरा भी उकाब कम है क्या
 
वो मुझे माहताब कहता है
इश्क में ये ख़िताब कम है क्या
 
फिर लजाकर छुपा लिया मुखड़ा
हुस्न पर ये नक़ाब कम है क्या
 
आँख रखना खुली यहाँ हरदम
ये ज़माना ख़राब कम है क्या
 
बाज़ अब तो सितम से आ जाओ
वो तमाशा ज़नाब कम है क्या
 
हर्फ़ सारे सिखाये क्यों 'शोभा'
ज़िंदगी की किताब कम है क्या

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