निगाहों में अब घर बनाने की धुन है
डॉ. शोभा श्रीवास्तव
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निगाहों में अब घर बनाने की धुन है।
हमें आपसे दिल लगाने की धुन है।
लकीरें हथेली की उलझी रही हैं,
मगर अब इसे आज़माने की धुन है।
कई लोग घायल हुए हैं वफ़ा में,
सुना है, मगर चोट खाने की धुन है।
सवालों में उलझा रहा दिल हमेशा,
जवाबों की महफ़िल सजाने की धुन है।
ग़लत की वकालत नहीं कर सके हम,
उन्हें झूठ को सच बताने की धुन है।
ज़रा सोचकर जाइए उस शहर में,
हवा में वहाँ विष मिलाने की धुन है।
हमारी तरह ज़िंदगी जी के देखो,
कि ‘शोभा’ को हँसने-हँसाने की धुन है।
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