गूँजे जीवन गीत
डॉ. शोभा श्रीवास्तवसाँसों में सरगम, धड़कन में बिखरा है संगीत।
प्रेम नगर के चौराहों पर गूँजे जीवन गीत॥
मन वीणा के सातों सुर क्यों करते हैं झंकार,
कोयल कुहुक-कुहुक कर करती है किसका मनुहार
जाने किसकी बाट निहारे मेरी अल्हड़ प्रीत
प्रेम नगर के चौराहों पर गूँजे जीवन गीत॥
अब के सावन में भीगा-भीगा आँचल न भाए
बरखा जब-जब बरसे, जाने कैसी अगन लगाए
लाज निगोड़ी समझाती है मुझको जग की रीत
प्रेम नगर के चौराहों पर गूँजे जीवन गीत॥
रह-रह कर मैं दर्पण देखूँ, मन ही मन मुसकाऊँ
खोल झरोखा गलियों में मैं अपने पलक बिछाऊँ
सोचूँ रह-रहकर कैसा होगा मेरा मनमीत
प्रेम नगर के चौराहों पर गूँजे जीवन गीत॥
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