सावन के झूले
डॉ. शोभा श्रीवास्तवसावन के झूले
परदेसी लौटे
जो घर का थे पथ भूले
बहकी है अमराई
साजन संग गोरी
झूले में जब मुसकाई
सावन की बूँदें
सोचे क्या सजनी
झूले में अखियाँ मूँदे
बूँदों कि छम छम
झूले में थिरक रही
पायल की मधुर सरगम
इतराए सावन
राधा रानी जब झूले
झुलाए नंद के नंदन
बरखा दीवानी है
प्रेम रस भींज रही
कोई नई कहानी है
रुत मदमाती है
सखियों संग गोरी
जब कजली गाती है
झूले सावन के
लेकर आए हैं
संदेशे मनभावन के
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