होली गीत

डॉ. शोभा श्रीवास्तव (अंक: 250, अप्रैल प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

लिये नेहरस आया फागुन, सजी माँग में प्रेम की रोली। 
मेरे मन के आँगन में प्रिय, छम छम नाच रही है होली। 
 
रंगों की बरसात अनोखी, रंग-बिरंगे सपने जागे, 
उम्मीदों के फूल खिले हैं, मन अंबर छूने को भागे। 
छलक रही रंगों की गंगा, मन का मयूरा थिरक रहा है, 
पायलिया की छन-छन ने सब भेद हृदय के आज है खोली, 
मेरे मन के आँगन में प्रिय, छम छम नाच रही है होली। 
 
दहक उठे हैं गाल गुलाबी, लाज भरा मुख लहक रहा है, 
जैसे टेसू फूल रँगीला, गोरी का तन यूँ दमक रहा है। 
सतरंगी आँचल की हलचल मौसम में रस घोल रही है, 
प्रीतम के मन को थिरकाए, सजनी की कोयल सी बोली। 
मेरे मन के आँगन में प्रिय, छम छम नाच रही है होली। 
 
नैना आपस में बतियाते, पिचकारी है एक बहाना, 
प्रिय के रंग में रंग कर लगता, जीवन का हर रंग सुहाना। 
ढोल नगाड़े की गुंजन भी मन में नव संगीत बिखेरे, 
मुसकाते हैं होंठ लजाकर, जब करती है सखी ठिठोली
मेरे मन के आँगन में प्रिय, छम छम नाच रही है होली। 
 
लिये नेहरस आया फागुन, सजी माँग में प्रेम की रोली। 
मेरे मन के आँगन में प्रिय, छम छम नाच रही है होली। 

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