ख़ामोशियाँ कहती रहीं सुनता रहा मैं रात भर

15-09-2022

ख़ामोशियाँ कहती रहीं सुनता रहा मैं रात भर

डॉ. शोभा श्रीवास्तव (अंक: 213, सितम्बर द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

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ख़ामोशियाँ कहती रहीं सुनता रहा मैं रात भर। 
सरगोशियों के लफ़्ज को गुनता रहा मैं रात भर॥
 
अहसास के साए कहीं खोए हुए हैं आजकल, 
जज़्बात की बाँहों तले पलता रहा मैं रात भर। 
 
शिकवा किसी से बेवजह करना नहीं है जान लो, 
यह सोच कर अल्फ़ाज़ को सिलता रहा मैं रात भर। 
 
शायद कभी पैग़ाम उसका आ न जाए फिर कहीं
ख़ुद को इसी उम्मीद में छलता रहा मैं रात भर। 
 
खलता नहीं ग़ैरों की आँखों में भला मैं क्यों कभी, 
इस बात पर अपनों को ही खलता रहा मैं रात भर। 
 
आवाज़ मुझको दे रहे थे चाँद तारे शाम से, 
बंद कमरे में मगर क्यों जलता रहा मैं रात भर। 
 
'शोभा' सभी के सामने दिल खोलना जायज़ नहीं, 
 तनहा यही बस सोच कर चलता रहा मैं रात भर। 

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