ख़ामोशियाँ कहती रहीं सुनता रहा मैं रात भर
डॉ. शोभा श्रीवास्तव2212 2212 2212 2212
ख़ामोशियाँ कहती रहीं सुनता रहा मैं रात भर।
सरगोशियों के लफ़्ज को गुनता रहा मैं रात भर॥
अहसास के साए कहीं खोए हुए हैं आजकल,
जज़्बात की बाँहों तले पलता रहा मैं रात भर।
शिकवा किसी से बेवजह करना नहीं है जान लो,
यह सोच कर अल्फ़ाज़ को सिलता रहा मैं रात भर।
शायद कभी पैग़ाम उसका आ न जाए फिर कहीं
ख़ुद को इसी उम्मीद में छलता रहा मैं रात भर।
खलता नहीं ग़ैरों की आँखों में भला मैं क्यों कभी,
इस बात पर अपनों को ही खलता रहा मैं रात भर।
आवाज़ मुझको दे रहे थे चाँद तारे शाम से,
बंद कमरे में मगर क्यों जलता रहा मैं रात भर।
'शोभा' सभी के सामने दिल खोलना जायज़ नहीं,
तनहा यही बस सोच कर चलता रहा मैं रात भर।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- सजल
- ग़ज़ल
-
- अर्श को मैं ज़रूर छू लेती
- आज फिर शाम की फ़ुर्क़त ने ग़ज़ब कर डाला
- आप जब से ज़िंदगी में आए हैं
- करूँगा क्या मैं अब इस ज़िन्दगी का
- कसमसाती ज़िन्दगी है हर जगह
- किससे शिकवा करें अज़ीयत की
- ख़त फाड़ कर मेरी तरफ़ दिलबर न फेंकिए
- ग़वारा करो गर लियाक़त हमारी
- जहाँ हम तुम खड़े हैं वह जगह बाज़ार ही तो है
- डरता है वो कैसे घर से बाहर निकले
- तारे छत पर तेरी उतरते हैं
- तीरगी सहरा से बस हासिल हुई
- तुम्हारी ये अदावत ठीक है क्या
- दर्द को दर्द का एहसास कहाँ होता है
- धूप इतनी भी नहीं है कि पिघल जाएँगे
- नहीं हमको भाती अदावत की दुनिया
- नाम इतना है उनकी अज़मत का
- निगाहों में अब घर बनाने की धुन है
- फ़ना हो गये हम दवा करते करते
- फ़िदा वो इस क़दर है आशिक़ी में
- बे-सबब दिल ग़म ज़दा होता नहीं
- भुलाने न देंगी जफ़ाएँ तुम्हारी
- रक़ीबों से हमको निभानी नहीं है
- रात-दिन यूँ बेकली अच्छी है क्या
- रौनक़-ए शाम रो पड़ी कल शब
- लाख पर्दा करो ज़माने से
- वो अगर मेरा हमसफ़र होता
- वफ़ा के तराने सुनाए हज़ारों
- सच कह रहे हो ये सफ़र आसान है बहुत
- हमें अब मयक़दा म'आब लगे
- हुस्न पर यूँ शबाब फिरते हैं
- ख़ामोशियाँ कहती रहीं सुनता रहा मैं रात भर
- ग़मनशीं था मयकशी तक आ गया
- फ़िज़ां में इस क़द्र है तीरगी अब
- गीत-नवगीत
-
- अधरों की मौन पीर
- आओ बैठो दो पल मेरे पास
- ए सनम सुन मुझे यूँ तनहा छोड़कर न जा
- कोरे काग़ज़ की छाती पर, पीर हृदय की लिख डालें
- गुरु महिमा
- गूँजे जीवन गीत
- चल संगी गाँव चलें
- जगमग करती इस दुनिया में
- जल संरक्षण
- ठूँठ होती आस्था के पात सारे झर गये
- ढूँढ़ रही हूँ अपना बचपन
- तक़दीर का फ़साना लिख देंगे आसमां पर
- तू मधुरिम गीत सुनाए जा
- तेरी प्रीत के सपने सजाता हूँ
- दहके-दहके टेसू, मेरे मन में अगन लगाये
- दीप हथेली में
- धीरज मेरा डोल रहा है
- फगुवाया मौसम गली गली
- बरगद की छाँव
- माँ ममता की मूरत होती, माँ का मान बढ़ाएँगे
- मौन अधर कुछ बोल रहे हैं
- रात इठला के ढलने लगी है
- शौक़ से जाओ मगर
- सावन के झूले
- होली गीत
- ख़ुशी के रंग मल देना सुनो इस बार होली में
- कविता
- किशोर साहित्य कविता
- हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
- नज़्म
- कविता-मुक्तक
- दोहे
- सामाजिक आलेख
- रचना समीक्षा
- साहित्यिक आलेख
- बाल साहित्य कविता
- विडियो
-
- ऑडियो
-