ए सनम सुन मुझे यूँ तनहा छोड़कर न जा

15-09-2022

ए सनम सुन मुझे यूँ तनहा छोड़कर न जा

डॉ. शोभा श्रीवास्तव (अंक: 213, सितम्बर द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

ए सनम सुन मुझे यूँ तनहा छोड़कर न जा। 
आईना दिल का संगदिल तू तोड़कर न जा॥
 
बहुत उदास नज़ारे हैं, ग़मज़दा है फ़जां। 
जल रहे हैं मगर है मद्धिम सितारों का जहाँ॥
वफ़ा का रुख़ मेरे जीवन से मोड़कर न जा। 
आईना दिल का संगदिल तू तोड़ कर न जा॥
 
चराग़ में है तू रोशन, तू ही ख़यालों में। 
जवाब बन के है शामिल मेरे सवालों में॥
दिल के तारों को मोहब्बत से जोड़कर न जा। 
आईना दिल का संगदिल तू तोड़ कर न जा॥
 
जख़्म रिसते हैं, तमन्ना लिख रही है ग़ज़ल। 
बिन तेरे सूना मेरी आस का ये ताजमहल॥
दे दस्तक तू इस महल को छोड़कर न जा। 
आईना दिल का संगदिल तू तोड़ कर न जा॥
 
ए सनम सुन मुझे यूँ तनहा छोड़कर न जा। 
आईना दिल का संगदिल तू तोड़कर न जा॥

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