मैंने सोचा

15-04-2020

मैंने सोचा

महेश रौतेला (अंक: 154, अप्रैल द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

मैंने सोचा
सूरज सत्य लेकर आयेगा
जगाने के लिये
और प्रकाश में नहा धो लूँगा।


हमने सोचा
नदी सत्य लेकर आयेगी
साफ़ जल के साथ
और तीर्थों पर डुबकी ले लेंगे।

 

हमने सोचा
पहाड़ सत्य लेकर आयेगा
कई कई बार हमारे लिये
ऊँचे शिखरों से।

 

हमने सोचा
आकाश सत्य लेकर आयेगा
असंख्य नक्षत्रों के साथ
और सतत उसे निहारते रहेंगे।

 

मैंने सोचा
प्यार सत्य लेकर आयेगा
अपने परायों  के संग
और कुछ अनमोल क्षण जी लेंगे।

 

मैंने सोचा
वृक्ष सत्य लेकर आयेगा
फल- फूलों से लदकर।

 

हमने सोचा
हवा सत्य लेकर आयेगी
तो जीवन शतायु हो लेगा।

 

फिर सोचा
कुछ सत्य हम में भी होगा
सूरज सा, नदी सा, पहाड़ सा,
प्यार सा, हवा सा, आकाश सा
वृक्ष सा और मनुष्य सा।

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