काग़ज़ की संतान
दिलीप कुमारसरकारी आदेश पढ़ते ही उनकी बाँछें खिल गयीं। सरकारी नौकरी कर रही महिलाओं को छह माह का प्रसूति अवकाश एवं दो वर्ष का लालन-पालन अवकाश दिया जाएगा। उनकी पहली संतान को पैदा हुए अट्ठारह वर्ष से अधिक समय हो चुका था। इस मौक़े को भुनाने की तैयारियाँ शुरू हो गईं। साड़ी छोड़कर अमृता मैडम ने सलवार-कुर्ता पहनना शुरू कर दिया। उन्होंने पेट पर तौलिया बाँधने की भी आदत डाली ताकि शिशु विकास दुनिया को नज़र आता रहे। शहर के एक बड़े नर्सिंग होम के डॉक्टर से उन्होंने समझौता भी कर लिया। आकस्मिक अवकाश, चिकित्सा अवकाश, के बाद उन्होंने छह महीने का प्रसूति अवकाश भी ले लिया।
जैसे-जैसे तौलिये की मोटाई बढ़ती गयी थी वैसे-वैसे डॉक्टर की फ़ीस भी। नियत समय पर बच्चे के जन्म का प्रमाण पत्र भी चिट्ठी की मार्फ़त आ गया था। अमृता मैडम ने शासनादेश का सदुपयोग करते हुए एक वर्ष का लालन-पालन अवकाश भी ले लिया। तक़रीबन डेढ़ वर्ष बाद उन्हें अब ड्यूटी पर दस्तक देनी थी। उसी नर्सिंग होम की दूसरी शाखा ने दूसरे शहर से बच्चे की बीमारी से मृत्यु का प्रमाण-पत्र जारी कर दिया था। बच्चे की बीमारी का हर्जा-ख़र्चा अमृता जी ने सरकार से वसूला और लोगों की संवेदना के साथ इन्कम टैक्स भी बचाया सो अलग से। काग़ज़ के चंद नोटों ने काग़ज़ की संतान को पैदा किया और मार भी डाला।
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