उस्ताद और शागिर्द
दिलीप कुमार
व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई के आज से लगभग 50 साल पहले के रचित अलग-अलग व्यंग्य लेखों से कुछ लाइनें चुन कर आपके समक्ष पेश हैं, जो आज भी बेहद मौज़ूँ हैं और मिर्ची से भी तीखी लगेंगी।
लेकिन यदि परसाई जी के शब्द भेदी बाणों को आज के समय की नज़ीर में देखा जाए तो शायद ये दास्तान कुछ और दिलचस्प लगेगी। तो पेश है उस दौर से इस दौर तक की कुछ हाज़िर-नाज़िर व्यंग्य की सदाबहार रवायतें।
मुलाहज़ फ़रमाएँ ख़्वातीनो-हज़रात जिसमें लाइनें व्यंग्य के उस्ताद परसाई साहब की हैं और नज़ीर व्यंग्य के शागिर्द इस व्यंग्यकार की।
1. लड़कों को अपना ईमानदार बाप निकम्मा लगता है।
नज़ीर: लड़के को बाप तभी तक निकम्मा नज़र आता है जब तक कि वह ख़ुद बाप न बन जाए और उसे इस बात का इल्हाम न हो जाये कि उसके बाप ने उसे पाल-पोस कर इतने काम लायक़ तो बना ही दिया कि लड़का अपने बाप को निकम्मा कह सके।
2. “दिवस” कमज़ोर का ही मनाया जाता है, जैसे कि “हिंदी दिवस”, “महिला दिवस”, “अध्यापक दिवस”, “मजदूर दिवस” कभी “थानेदार दिवस” नहीं मनाया जाता।
नज़ीर: आम आदमी हाथ जोड़कर ईश्वर से प्रार्थना करता है कि जीवन के किसी भी दिवस में उसे थाने न जाना पड़े और अगर कभी जाना भी पड़े तो उसी दिवस में ही घर वापसी हो जाये। बड़े बुज़ुर्ग फ़रमा गए हैं कि थाने में बिताई गई एक रात जेल में बिताई गई एक वर्ष की रातों से भी ज़्यादा कष्टकारी होती है।
3. व्यस्त आदमी को अपना काम करने में जितनी अक़्ल की ज़रूरत पड़ती है, उससे ज़्यादा अक़्ल बेकार आदमी को समय काटने में लगती है।
नज़ीर: व्यस्तता एक मार्गी होती है। एक काम को करना कोई मुश्किल कार्य नहीं जबकि ख़ाली दिमाग़ में शैतान के घर होता हैं उनसे जूझना आसान कार्य नहीं है।
4. जिनकी हैसियत है वे एक से भी ज़्यादा बाप रखते हैं। एक घर में, एक दफ़्तर में, एक-दो बाज़ार में, एक-एक हर राजनीतिक दल में।
नज़ीर: पाकिस्तान इसका सटीक उदाहरण है जो अमेरिका को क़ाबू में रखने के लिए चीन से पैसा लेता है और चीन को क़ाबू करने के लिए अमेरिका से पैसा लेता है। आतंकवाद फैलाने के लिए सऊदी अरब से काल्पनिक जिहाद के नाम पर पैसा लेता है फिर पश्चिमी देशों से जिहाद का डर दिखाकर पैसा लेता है। वैसे तो ये देश भारत से ही पैदा हुआ है पर भारत के अलावा इसने क़र्ज़ा देने वाले हर देश को बाप बना रखा है।
5.आत्मविश्वास कई प्रकार का होता है, धन का, बल का, ज्ञान का। लेकिन मूर्खता का आत्मविश्वास सर्वोपरि होता है।
नज़ीर: हिंदी का लेखक इस मूर्खता में लिखता-छपता जाता है कि वह लिखकर मानवता पर कोई एहसान कर रहा जबकि आमतौर समाज उसे अनुग्रह एवं दया की दृष्टि से देखता है कि इसे लिख लेने दो नहीं तो ये मानसिक विक्षिप्त हो जायेगा।
6. सबसे निरर्थक आंदोलन भ्रष्टाचार के विरोध का आंदोलन होता है। एक प्रकार का यह मनोरंजन है जो राजनीतिक पार्टी कभी-कभी खेल लेती है, जैसे क्रिकेट या कबड्डी के मैच।
नज़ीर: यदि आप भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए बिना टिकट रेल में जा रहे हो तो यदि टीटी ने पकड़ लिया हो तो आप अपना मिशन बताएँ। बिना टिकट के बाक़ी लोगों से अगर टीटी पाँच सौ रुपये लेता है तो आपको ढाई सौ में ही राजधानी पहुँचा देगा। आख़िर उसे भी तो भ्रष्टाचार का विरोध करना है करप्शन में इसीलिए डिस्काउंट दे देता है।
7. हमारे लोकतंत्र की यह ट्रेजेडी और कॉमेडी है कि कई लोग जिन्हें आजन्म जेलख़ाने में रहना चाहिए वे ज़िन्दगी भर संसद या विधानसभा में बैठते हैं।
नज़ीर: अब ये फ़र्क़ मिट चुका है। दिल्ली के एक मुख्यमंत्री सफलतापूर्वक जेल से सरकार चला चुके हैं। उनके लिये दिल्ली सचिवालय और तिहाड़ जेल समान रूप से कार्यालय के समान रहे हैं।
8. विचार जब लुप्त हो जाता है, या विचार प्रकट करने में बाधा होती है, या किसी के विरोध से भय लगने लगता है, तब तर्क का स्थान हुल्लड़ या गुंडागर्दी ले लेती है।
नज़ीर: हिंदी के 75 पार के व्यंग्यकार दूसरों के परिवार से ली गई पुरस्कार राशि अपनी यारी दोस्ती पर उन लेखक-लेखिकाओं को दे देते हैं जो जीवन भर कविता या कहानी लिखते रहे हैं। इससे बड़ी वैचारिक दरिद्रता क्या होगी और इस पर तुर्रा ये कि हम तो निःस्वार्थ व्यंग्य को ऊँचाई पर ले जा रहे हैं। तो फिर व्यंग्य को रसातल में ले जाना क्या होता होगा? महज़ कल्पना करें।
9. धन उधार देकर समाज का शोषण करने वाले धनपति को जिस दिन “महा-जन” कहा गया होगा, उस दिन ही मनुष्यता की हार हो गई।
नज़ीर: मनुष्यता हार कर पशुता में बदलने में देर नहीं लगती। हाल ही एक धनकुबेर के वन तारा नामक स्थान में एक पत्रकार ने धनकुबेर को ख़ुश करने के लिए हाथी को दिया जाने वाला भोजन माँग कर न सिर्फ़ खाया बल्कि भूरि-भूरि तारीफ़ें भी की। किसी मनुष्य के हज़ार करोड़ के पशुओं के चारा घोटाले की ख़बरें बरसों तक इनके चैनल पर चलती रहीं और अब ये ख़ुद हाथी का भोजन खाने लगे और वाह-वाह भी करने लगे।
10. हम मानसिक रूप से दोगले नहीं तिगले हैं। संस्कारों से सामन्तवादी हैं, जीवन मूल्य अर्द्ध-पूंजीवादी हैं और बातें समाजवाद की करते हैं।
नज़ीर: हिंदी का सम्पादक शराब की बोतल लाने पर टैक्स बचाने के लिए बनाए गए साहित्यिक ट्रस्ट की पत्रिका में शराब बंदी पर कविता छापता है और उसी शराब बंदी पर छपी कविता से मिले मानदेय से शराब बंदी के ख़िलाफ़ लिखने वाला देसी कवि अंग्रेज़ी शराब पीकर फिर शराब से हुई बर्बादी पर कविता लिखने की प्रेरणा लेता है।
11. फासिस्ट संगठन की विशेषता होती है कि दिमाग़ सिर्फ़ नेता के पास होता है, बाक़ी सब कार्यकर्ताओं के पास सिर्फ़ शरीर होता है।
नज़ीर: कम्युनिस्ट पार्टी के आला लीडरान जल, जंगल, ज़मीन की बात करते हैं ये मूलमंत्र सिर्फ़ कार्यकर्ताओं के लिए है जो कि शरीर की तरह है जबकि आला लीडरान अपने बच्चों को पढ़ने के लिए विदेश भेज देते हैं और पार्टी के युवकों को सशस्त्र क्रांति का मार्ग बताते हैं ताकि सिलसिला चलता रहे।
12. बेइज़्ज़ती में अगर दूसरे को भी शामिल कर लो तो आधी इज़्ज़त बच जाती है।
नज़ीर: अपने घर में मियाँ बीवी में झगड़ा और मार कुटाई हो रही हो और पड़ोस के काफ़ी सारे लोग देख-देख कर लुत्फ़ ले रहे हों उसी समय यदि पड़ोस में भी किसी घर में जूतम-पैजार शुरू हो जाये तो ख़ुद को महसूस होने वाली बेइज़्ज़ती और फ़ज़ीहत आधी ही महसूस होती है कि सरेआम जूतमपैजार वाले होने वाले हम अकेले नहीं हैं।
13. दुनिया में भाषा, अभिव्यक्ति के काम आती है। इस देश में दंगे के काम आती है।
नज़ीर: कश्मीर के अलगाववादी नेता जब दिल्ली में किसी सार्वजनिक समारोह में आते हैं तो इंसानियत वग़ैरह की बात करते हैं लेकिन वही नेता कश्मीर में जब जाते हैं तो अलगाव, मारकाट और दंगे करने की भाषा बोलते हैं|
14. जब शर्म की बात गर्व की बात बन जाए, तब समझो कि जनतंत्र बढ़िया चल रहा है।
नज़ीर: भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशाअल्लाह, इंशाअल्लाह और भारत की बर्बादी तक जंग रहेगी जैसे भारत विरोधी नारे लगाने वाले लोगों को जब कोई राष्ट्रीय या अतीत की बड़ी राष्ट्रीय पार्टी न सिर्फ़ चुनावी टिकट दे दे बल्कि उसके कुकृत्यों का बचाव भी करे और इसे लोकतंत्र की आज़ादी कहते हुए बोले कि देश विरोधी नारे लगाना देशद्रोह नहीं है। तो वाक़ई ये जनतंत्र में ही चल सकता है।
15. जो पानी छानकर पीते हैं, वो आदमी का ख़ून बिना छाने पी जाते हैं।
नज़ीर: हाफ़िज़ सईद जैसे लोग जो भारत में हज़ारों लोगों की मौत बम और गोलियों के ज़रिये करवा देते हैं वह दिन भर तस्बीह घुमाते हुए ख़ुद को धर्म प्रचारक कहते हैं और दिलचस्प बात ये कि भारत के ही ज़ाकिर नाईक जैसे लोग इस हाफ़िज़ सईद की विचारधारा को आगे बढ़ाते हैं और उसे नाम देते हैं पीस टीवी, यानी क़त्लोग़ारत की तालीम पीस यानी शान्ति नामक चैनल पर प्रसारित करते हैं
16. सोचना एक रोग है, जो इस रोग से मुक्त हैं और स्वस्थ हैं, वे धन्य हैं।
नज़ीर: जैसे मुंबईया फ़िल्म मेंकर ख़ुद तो बिना सोचे समझे फ़िल्मेंं बनाते हैं फिर छाती ठोंककर कहते हैं कि आप अपना दिमाग़ घर छोड़कर ही थियेटर में फ़िल्म देखने आएँ। फिल्मकार ख़ुद तो इस न सोचने के रोग से पीड़ित हैं मगर जनता समझदार है इसलिए पायरेटेड फ़िल्म देख लेती है और थियेटर नहीं जाती।
17. हीनता के रोग में किसी के अहित का इंजेक्शन बड़ा कारगर होता है।
नज़ीर: यदि अपनी टाटा नैनो पंचर हो जाये और उसे खींचकर बनवाने ले जाना पड़े और उसी समय यदि किसी की मर्सडीज भी सड़क पर चलते चलते ख़राब हो जाये तो उसे खींचकर बनवाने ले जाना पड़े तो ये देखकर सस्ती कार होने की हीन भावना तुरंत आधी हो जाती है।
18. नारी-मुक्ति के इतिहास में यह वाक्य अमर रहेगा कि ‘एक की कमाई से पूरा नहीं पड़ता।”
नज़ीर: नारी मुक्ति का झंडा बुलंद करने वालियों को कमाई में समानता और कार्य क्षेत्र में अतिरिक्त सुविधाओं की महती पैरोकार होती हैं।
19. एक बार कचहरी चढ़ जाने के बाद सबसे बड़ा काम है, अपने ही वकील से अपनी रक्षा करना।
नज़ीर: ताकि किसी और से असुरक्षा न रहे। एक बड़ी लकीर ही दूसरी लकीर को छोटा कर सकती है।
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