सदी की शादी

दिलीप कुमार (अंक: 258, अगस्त प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

“जय श्रीराम शुक्लाजी, कहाँ से लौट रहे हैं इतनी गर्मी में? आसमान से आग बरस रही है और आप स्कूटर घर में रखकर साइकिल भांज रहे हैं। काहे बचा रहे हैं इतना पैसा?” मैंने उन्हें अभिवादन करते हुए उन्हें शब्दों की चिकोटी काटने की कोशिश की। 

“राम-राम, कैसे हो कुमार ख़ुराफ़ाती। तुम ख़ुराफ़ात से बाज़ नहीं आओगे। मंचीय कविता की दुकान आजकल बंद है क्या? जो तुम सड़क पर दिख रहे हो। रुके हैं तो कविता न सुनाने लगना। कुछ ठंडा वग़ैरह पिलाओ। मंचों पर मानदेय वाले लिफ़ाफ़े तो ख़ूब लेते हो, सुना है सरकार ने उस पर भी जीएसटी लगा दिया है। तुम भी कुछ टैक्स देते हो कविता की कमाई पर? या सब टैक्स दबा ही लेते हो। वैसे तुम तो मुझे नमस्ते किया करते थे पहले। फिर आजकल बड़े नारे लगा रहे हो जय श्रीराम के। कोई ख़ास बात है क्या?” 

“नहीं जी, अभिवादन में कोई एजेंडा तो है नहीं। हिंदी में अभिवादन के बहुत से विकल्प हैं जब जो भी सूझ जाए और मुँह से निकल जाये। मुझे तो राम-राम और जय श्रीराम में कोई विशेष फ़र्क़ नज़र नहीं आता। दोनों ही एक क़िस्म का अभिवादन ही है। ख़ैर हमारी छोड़िए आपने बताया नहीं कि कहाँ से आ रहे हैं और इस गर्मी में स्कूटर घर पर रखकर साइकिल चलाने की कोई ख़ास वजह?” 

“पेट्रोल की महँगाई और क्या! महँगाई डायन नोच-नोच कर खाए जा रही है। सब्ज़ी महँगी, पेटोल महँगा, सब कुछ महँगा हो चला है और अब तो मोबाइल का रिचार्ज भी महँगा हो गया है हर कम्पनी का। चार पैसे बचा रहे हैं कि बच्चों की शादी . . . बस डाकखाने तक गए थे। बैंक में एक यफडी मेच्योर हुई थी। उसी पैसे को डाकखाने में जमा करने गया था। मेरे पीपीएफ के भी मेच्योर होने का यह आख़िरी साल है। पीपीएफ में तो चक्रवृद्धि ब्याज मिलता है। कुछ एक्स्ट्रा इनकम हो जाएगी। बच्चों की शादी करनी है अब हम कोई अम्बानी तो हैं नहीं जो सारी दौलत बच्चों की शादी पर लुटा दें।” 

मुझे उनकी बात सुनकर हँसी आ गई। मेरे हँसने पर वह अक्सर भड़क जाते हैं और न जाने मुझे क्यों “कंघी” कहकर चिढ़ाते हैं। हो सकता है मेरे गंजेपन का उपहास करने के लिए मुझे “कंघी” कहते हैं मगर मेरे दोस्तों का मानना है कि वह मुझे “कंघी” इसलिये कहते हैं ताकि “कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना” वाली बात साबित हो सके। हँसी दबाते हुए मैंने धीरे से कहा, “आप ब्याज को छोड़कर चक्रवृद्धि ब्याज कमाने की सोच रहे हैं ताकि अपने बच्चों की शादी धूमधाम से कर सकें तो फिर उन्हें हक़ नहीं है क्या कि अपने बेटे के विवाह पर अपनी मर्ज़ी के अनुसार ख़र्च करने का?”

शुक्ला जी भड़कते हुए बोले, “ख़ुराफ़ाती तुम कवि कम और पक्के ख़ुराफ़ाती ज़्यादा हो। इसीलिए उस शाही शादी में हर किसी को बुलाया गया। यहाँ तक कि खली पहलवान को भी। बस तुम्हीं लोग रह गए। किसी भी कवि-लेखक को नहीं बुलाया गया,” यह कहकर उन्होंने अपनी कुटिल मुस्कान बिखेरी। 

उनकी बात से मुझे थोड़ा ग्लानि और तिलमिलाहट तो हुई कि महीनों से चल रहे इस आनंद के उत्सव में फ़िल्म, क्रिकेट और राजनीति के दिग्गज बुलाये गए। मगर कवि एवं साहित्यकार ही नहीं बुलाये गए अलबत्ता गीत-संगीत की महफ़िल ख़ूब सजी। पहले प्री-वेडिंग में भारत की खेती-किसानी की गूढ़ जानकार और इंडिया के किसान आंदोलन पर गहरी समझ रखने वाली पाप सिंगर रेहाना को बुलाया गया था और अब विवाह में उत्तम एवं संतुलित वस्त्र पहनने वाले गायक जस्टिन वीबर को बुलाया गया। उन्होंने शादी में किसको बुलाया या नहीं बुलाया, यह उनका विषेशाधिकार है लेकिन शुक्ला जी ने कवियों-शायरों को लेकर जिस तरह मेरी खिल्ली उड़ाई तो यह बात मुझे चुभ गई। अब मुझे बचाव तो करना ही था। कुछ नहीं सूझा तो मैंने शुक्ला जी से कहा, “सुनिए साहब, खिचड़ी खाकर और सस्ता सूट पहनकर अम्बानी जी ने ये पैसे इसी दिन के लिए बचाये थे कि अपने तीसरी और आख़िरी सन्तान की शादी में दिल खोल कर ख़र्च कर सकें। सिर्फ़ रिलायंस कम्पनी का प्रॉफ़िट सालाना साठ से सत्तर हज़ार करोड़ है। इस शादी में भी मुकेश अम्बानी जी कुछ हाथ तंग किये दिखे। अनुमान है कि उन्होंने सिर्फ़ पाँच हज़ार करोड़ ख़र्च किये शादी पर। यानी उनकी नौ दस लिस्टेड कंपनियों में से सिर्फ़ एक कम्पनी की एक महीने की कमाई। आम भारतीय तो दस से पंद्रह वर्षों की कमाई अपनी औलाद की शादी पर ख़र्च करता है और मुकेश अम्बानी ने बस एक कम्पनी की एक महीने की कमाई ख़र्च की। वाक़ई बेहद किफ़ायत से शादी की है मुकेश अम्बानी जी ने अपने लाड़ले सुपुत्र की।” 

शुक्ला जी ने कहा, “पिछली बार इसी जोड़े की प्री-वेडिंग में जामनगर में टीवी के मशहूर चैनल के एक बड़े एंकर ने वनतारा चिड़ियाघर में हाथी को दिया जाना वाला नाश्ता ख़ुद चखकर अपना प्रेम प्रदर्शित किया था। तुम होते तो तुम क्या खाकर या कौन सी कविता गाकर अपना उस शादी के प्रति अपना नेह-मोह प्रदर्शित करते कविवर ‘कुमार ख़ुराफ़ाती’?” यह कहते हुए शुक्ला जी ने शब्दों की गहरी जलेबी छानी। 

मैं फिर गड़बड़ा गया उनके इस चुटीले वार से। बात को मोड़ने की ग़रज़ से मैंने कहा, “जी वहाँ हिंदी के कवियों और शायरों को इसलिये नहीं बुलाया गया क्योंकि वह सब गुजराती हैं। गूढ़ हिंदी ज़्यादा समझते नहीं।” 

“तो फिर हिंदी फ़िल्म वालों को क्यों बुलाया, यह भी बताओ कुमार ख़ुराफ़ाती?” उन्होंने शब्दों की एक और गुगली डाली जिससे मेरा क्लीन बोल्ड होना लाज़िमी था। 

बात का सिरा मोड़ने का प्रयत्न करते हुए मैंने कहा, “वन्य जीव प्रेमी अनन्त अम्बानी की शादी हो गई राधिका से। शादी मुबारक हो नव दम्पत्ति को। सुना आपने इस शादी को ‘शताब्दी की शादी’ कहा जा रहा है। यह एशिया के सबसे अमीर आदमी के बेटे की ही शादी नहीं बल्कि एशिया की सबसे लंबी और महँगी शादी भी है। इसे ‘सदी की शादी’ भी कहा जा रहा है। यह हमारे देश की बढ़ती शक्ति और आर्थिक मज़बूती का परिचायक है। ‘देश की समृद्धि’ का प्रदर्शन देखकर गर्व हुआ। मेरी तरह बहुत से देशवासी गर्वित हैं। देखना आप आगामी दिनों में ऐसी तमाम विश्व स्तरीय शादियाँ भारत में देखने को मिलेंगी जिससे अर्थव्यवस्था में मज़बूती आयेगी,” ये कहकर मैंने सीना चौड़ा करके हँसना शुरू कर दिया ताकि शुक्ला जी प्रभावित हो सकें। 

“तुम जैसे अब्दुल्लाओं ने बेगानी शादी में कब से रायता सूँघना शुरू कर दिया। तुम कुमार ख़ुराफ़ाती नहीं बल्कि बुद्धि से ख़ैराती हो,” इसके आगे बोलते हुए उन्हें मुझे हिक़ारत से काफ़ी कुछ कहा और चले गए। 

उनके जाने से मैंने चैन की साँस ली कि चलो ठंडे के पैसे बचे। इससे मेरे मोबाइल के महँगे हुए रिचार्ज की कुछ तो भरपाई हो जाएगी। वैसे शुक्ला जी ग़लत नहीं कह रहे थे अगर सबको बुलाया था तो किसी शायर या कवि को भी बुला लेते शादी में ताकि हम जैसे बेगानी शादी वाले दीवाने अब्दुल्ला न कहे जाते। 

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