तब तुम क्यों चल देती हो

15-09-2023

तब तुम क्यों चल देती हो

दिलीप कुमार (अंक: 237, सितम्बर द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

तब तुम क्यों चल देती हो?
 
जब भी मुझे कुछ होता है कहना, 
रोकता हूँ तुम्हें कि यहीं ठाड़े रहना, 
मेरा कहन मेरी मजबूरी है, 
ये सम्बन्धों में भी ज़रूरी है, 
जब भी तुमको ये बताता हूँ, 
तब तुम क्यों चल देती हो?
 
वो कष्ट के दिन जो तुम पर बीते, 
उन दिनों के हाल भी कह दो मीते, 
उन विपदाओं से तुम कैसे जूझी, 
उस कठिनाई में तुम्हें क्या क्या सूझी, 
वो सब जब पूछने की कोशिश करता, 
तब तुम क्यों चल देती हो?
 
किसी तरह तक यहाँ आ पहुँचा जीवन, 
आगे क्या होगा कुछ तो खोलो मन, 
यौवन की साँझ न अभी तलक आई, 
संघर्षों में तपकर ही तो कली मुस्काई, 
जब नई ख़ुशी दे रही जीवन में दस्तक, 
तब तुम क्यों चल देती हो?
 
आओ बैठो तो आगे की कुछ बात करें, 
स्वप्नों की कूची से जीवन में नये रंग भरें, 
हम देखें कैसे नीड़ बनेंगे फिर, 
ये डगमग जीवन नैया कब होगी स्थिर, 
इसलिये जब भी मैं कहता हूँ कुछ, 
तब तुम क्यों चल देती हो? 
 
तुम यूँ ही अकेले कितनी दूर तक चलोगी, 
कोई सहचर साथ न चलने को कहोगी, 
ये जीवन पथ ऐसे न कटेगा ओ साथी, 
कोई न कोई उम्मीद हमें रखनी होगी बाक़ी, 
मैं जब भी हम की बात करता हूँ, 
तब तुम क्यों चल देती हो? 

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