उस वक़्त अगर मैं तेरे संग होता

15-09-2023

उस वक़्त अगर मैं तेरे संग होता

दिलीप कुमार (अंक: 237, सितम्बर द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)


उस वक़्त अगर मैं तेरे संग होता।
  
जीवन में न इतने न संघर्ष होते, 
सारे सपने यूँ ही न रह जाते सोते, 
सब लेते सोख तुम्हारी पीड़ा, 
करते झंकृत तुम्हारे मन की वीणा, 
जीवन तब न इतना विषम होता, 
उस वक़्त अगर मैं तेरे संग होता।
 
वो दिन जो तुम्हारे रो-रोकर बीते, 
यातना जो गुज़री आँसू पीते-पीते, 
उन पूरे दुखों में तुम कैसे हुई आधी, 
अपने कष्टों में तुमने थी कितनी चुप्पी साधी, 
हम सुन कर तुम्हारी कुछ तो कहते, 
उस वक़्त अगर हम तेरे संग होते।
 
तब वक़्त ने तुम्हें कितना रौंदा, 
आँधी ने न बसने दिया घरौंदा, 
आख़िर तुमने ये क्योंकर ठाना, 
कैसे बिगड़ा जीवन का ताना-बाना, 
ये सोच के मैं हूँ जब-तब रोता, 
उस वक़्त अगर मैं तेरे संग होता।
 
ये खेला तब खेल रहा था विधाता, 
जीवन में लाया था वही सन्नाटा, 
उस दौर को सोच के आती है सिहरन, 
उन संघर्षों से होता है विचलित मन, 
कोई आँसू छिपा कर कैसे था रोता, 
उस वक़्त अगर मैं तेरे संग होता।
 
माना उस वक़्त तेरे साथ नहीं थे हम, 
अब आ गए हैं तो क्या ये है कम, 
अब दे दो मुझे सारे अपने रंजो ग़म, 
दुख की स्मृतियों को कुछ तो करो कम, 
जीवन कभी मामूली नहीं होता, 
उस वक़्त अगर मैं तेरे संग होता। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
लघुकथा
बाल साहित्य कविता
कहानी
सिनेमा चर्चा
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में