व्यंग्य लंका

दिलीप कुमार (अंक: 228, मई प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

“ना रुपया ना पैसा ना कौड़ी रे 
ये मोटू और पतलू की जोड़ी रे 
मोटू और पतलू रे”

ये गीत गाते हुए प्रकाशक के लाये हुए लड्डू खाते हुए मोटू ने गब्बर स्टाइल में कहा, “अरे पतलू भाई, कितने आदमी होंगे नए व्यंग्य संग्रह में?”

पतलू ने भी लड्डू मुँह में डालते हुए उत्साहित होकर सांबा की तरह कहा, “पूरे पचास।”

मोटू ने तड़कते हुए कहा, “पचास सालों से पचास पर ही अटका हुआ है, आगे बढ़ ना।” 

पतलू ने झल्लाते होते हुए कहा, “बात पूरी सुना करो यार, इसीलिये तुम्हारी कोई परियोजना बिना लफड़ेबाज़ी के पूरी नहीं हो पाती। मैं बोल रहा था कि पचास तो अपनी टीम के पुराने बन्दे रहेंगे। उनको तो हमको कुछ बोलना ही नहीं है, जो कहेंगे वो मान लेंगे। वो तो अपने कहने पर कहीं भी गर्दन झुकाने को तैयार रहते हैं। रहा सवाल बाक़ी पचास का, तो वो हम नए बन्दे लेंगे।” 

“नए बन्दे क्यों लेंगे, जब हमारी सौ लोगों की बारात पूरी है। क्योंकि जो पचास हमारे कोर मेम्बर हैं वो अगर एक-एक को लाएँगे तो सौ लोग तो चुटकी बजाते ही जुड़ जाएँगे। और जब सौ व्यंग्य हाज़िर हैं तो व्यंग्य की बैंड बजने में देर क्यों है यार?” मोटू इस बार झल्लाते हुए बोला। 

पतलू भी झल्ला गया और तुर्शी से बोला, “ये ना तो फुरफुरी नगर है और ना ही तुम इंस्पेक्टर चिंगम हो जो तुम्हारे हिसाब से खेल चलेगा। ऐसे में सौ अच्छे लेखकों को लेकर संग्रह निकालना आसान काम नहीं है।” 

मोटू ने कहा, “फुरफुरी नगर के खिलाड़ियों और हमारी टीम के लेखकों में कोई ख़ास फ़र्क़ है क्या? और जब पहले ही हमारी सौ बंदों की टीम थी तो पचास का ही नाम क्यों ले रहे हो बाक़ी के पचास व्यंग्य बाराती कम कैसे हो गए?” 

पतलू ने कहा, “अमां यार समझा करो जिन पचास लेखकों को हटाया गया है, वो ऐसे लोग हैं जिन्होंने संग्रह में नाम आने के बाद पलट कर हमको सलामी नहीं दी। ना अपनी फ़ेसबुक वाल पर हमारे लेखन की बड़ाई की और ना ही हमारी फ़ेस बुक वाल पर कभी भी हमारे लिखे को क्लासिक और कालजयी जैसे शब्द नहीं नवाज़े। अब तुम्हीं बताओ भाई ऐसे नाशुक्रे पचास लोगों को अपनी किताब में जगह देने का कोई मतलब है? इसीलिये इनको निकाल दिया आगामी किताब से, ठीक किया ना भाई?” 

मोटू ने गंभीर स्वर में कहा, “बिल्कुल ठीक किया भाई, अच्छा ये बताओ बाक़ी के जो पचास लोग परमानेन्ट टीम में हैं उन्होंने रेग्युलर हमारी लल्लो-चप्पो की है ना, पूरे साल सलामी ठोंकते रहे हैं ना, तुमने भाई पूरी तरह चेक कर लिया है ना? कोई बाग़ी तो नहीं बना, किसी ने बग़ावत तो नहीं की?” 

पतलू ने हँसते हुए कहा, “भले ही लोग हमें व्यंग्य के मोटू-पतलू बुलाते हैं लेकिन हम दोनों की जोड़ी जय-वीरू टाइप की है। यहाँ विजय हो ना हो लेकिन कोई जय शहीद नहीं होता और व्यंग्य हमारे लिये रामगढ़ की चक्की का आटा है। हम दोनों अतुकांत कविताओं से लतियाये गए लेकिन मानो या न मानो व्यंग्य ही ने हमको सिरज रखा है। सही कहा ना मोटू भाई, सारी वीरू भाई?” 

“सही कहा भी और सही किया भी, पतलू भाई, सारी जय भाई,” मोटू ने हँसते हुए जवाब दिया। 

उन दोनों की शिखर वार्ता के दौरान व्यंग्य के रामगढ़ में सांबा इस बार लेडी सांबा के रूप में अवतरित हुआ। अपनी नाक सहलाते हुए वो ज़नाना, ख़ालिस ज़नाना स्वर में बोली, “मोटू भैया, पतलू भैया आप लोग मुझे भूल गये। आप लोग मुझे अब अपनी बहन सूर्पनखा समझें। मेरी नाक कटी ही समझो।” 

मोटू-पतलू बड़ी देर तक लेडी सांबा की सलामत नाक को देखते रहे। फिर मोटू ने कहा, “देख बहना, तू भले ही ख़ुद को सूर्पनखा समझ ले। लेकिन हम तुझे बहन मानकर रावण नहीं बनने वाले। पहली बात तो कलजुग में सूर्पनखा भले ही इफ़रात मिलती हों मगर लक्ष्मण तो एक भी नहीं होते, फिर तेरी नाक तो अभी सलामत है बहना, फिर तू सूर्पनखा कैसे हुई बहना।” 

लेडी सांबा कुछ बोल पाती इससे पहले ही पतलू ने होशियारी दिखाते हुए कहा, “सँभल के रहना भाई, इसकी नाक सलामत है। जिस तरह कलजुग में लक्ष्मण नहीं होते। उसी तरह कलजुग में हमको मारीचि नहीं बनना है कि कोई हिरन समझ कर हम पर बाण वर्षा कर दे और हम टें बोल जाएँ। इसके बाद बरसों की सेटिंग-गेटिंग से बनायी हुई ये हमारी ये ‘व्यंग्य लंका’ जल कर राख हो जाये। ये हमारी व्यंग्य लंका ही हमारे लिए स्वर्ण लंका है। हम इस पर अपना दावा हरगिज़ नहीं छोड़ सकते चाहे जितने बंधु-बांधव से नाराज़गी हो जाये। बस हमारे प्यारे प्रकाशक नाराज़ नहीं होने चाहिये। तूने किसी प्रकाशक को नाराज़ तो नहीं किया ना बहना।” 

लेडी सांबा सुबकते हुए बोली, “मेरी असली नाक तो सलामत है लेकिन मन की नाक कट गयी समझो। हर युग में लक्ष्मण नहीं आते नाक काटने लेकिन कलजुग में भी सूर्पनखा की नाक कटती ही रहती है। इस बार मुझे चार-पाँच महिलाओं को आने वाली व्यंग्य की किताब से निकलवाना है। उन लोगों को मैं ही लायी थी लेकिन अब वे सब मुझे ही भाव नहीं देती हैं। और कहीं तो छप नहीं पातीं अब यहाँ से भी निकाल दी जाएँगी तब पता चलेगा। तो समझो भैया मेरी नाक सलामत रखनी है, वरना वो पाँचो लेडीज़ मुझे ताना देंगी, मेरा उपहास करेंगी। और मेरी बेइज़्ज़ती हुई तो मैं ख़ुद को सूर्पनखा ही समझूँगी।”

ये कहते हुए लेडी सांबा ने सुबकते हुए उन पाँच नामों की लिस्ट बढ़ा दी। 

मोटू और पतलू ने लिस्ट को चेक किया। वो पाँच लेखिकाएँ उन पचास की लिस्ट में शामिल थीं जो वफ़ादार व्यंग्य बाराती थे। 

मोटू ने कहा, “बमुश्किल हमने पचास वफ़ादारों की लिस्ट तैयार की है जो हमारे गाजर-मूली लेखन पर भी क़सीदे गढ़ते आये हैं। ये तुम्हारी नहीं मगर हमारी वफ़ादार रही हैं। ये और बात है बहना कि तुम्हारी मन की नाक भी तो बचानी है। लेकिन ये भी सोचो कि इनको हटाएँगे तो नारी शक्ति सन्तुलन बिगड़ जायेगा हमारी टीम से। बड़ा धर्मसंकट है ,” ये कहकर मोटू ने चिंतातुर होकर गहरी साँस छोड़ी। 

अपना काम बिगड़ता देखकर लेडी सांबा ने फिर सुबकना शुरू कर दिया। 

इस इमोशनल अत्याचार से आजिज़ होकर पतलू ने कहा, “इनको हटाएँगे तो ऐसे पाँच कहाँ से लाएँगे, तुमने विकल्प का कुछ इंतज़ाम किया है?” 

सुबकना बंद करते हुए लेडी सांबा ने लिस्ट बढ़ा दी जिसमें पाँच नए नाम थे। 

मोटू-पतलू दोनों ने लिस्ट देखी और एक साथ पूछा, “इन्होंने कभी व्यंग्य लिखा है क्या? हमने तो इनका नाम नहीं सुना कभी। कैसे मैनेज होगा सब?” 

“पहली बात तो ये है कि इन पाँचों की वफ़ादारी पांडवों की तरह है। दूसरी बात ये है कि इन लोगों ने लिखना शुरू किया है, धीरे-धीरे व्यंग्य लिखना भी सीख ही जाएँगी। इसी तरह सब मैनेज हो जायेगा। वैसे भी हमारे पिछले व्यंग्य संग्रह में कितने ही लेखक-लेखिकाएँ ऐसे थे जो कि बिना एक भी ढंग का व्यंग्य लिखे ही . . .” 

“शऽऽऽऽश” की आवाज़ निकालते हुए होंठों पर उँगली रखते हुए चुप रहने का इशारा करते हुए पतलू ने कहा, “चुप कर बहना, इतनी पोल मत खोल। तेरी नाक कटने से हमने बचा लिया तुझे लेकिन तू ऐसे बोलेगी और कोई सुन लेगा तो व्यंग्य बिरादरी में वैसे भी हमारी कोई इज़्ज़त नहीं है, नौकरी के बलबूते पर जो हमारी रही-सही नाक अब तक बची हुई है वो भी ज़रूर कट जाएगी।” 

पतलू की इस हरकत पर लेडी सांबा हँस पड़ी। उसे हँसता देखकर मोटू-पतलू भी हँसने लगे। 

नेपथ्य में कहीं एक गीत बज रहा था:

“ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे।” 

इस गीत पर लेडी सांबा तर्ज़ बनाते हुए मन ही मन गुनगुना रही थी: 

“और व्यंग्य का दिवाला निकालकर छोड़ेंगे!” 

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