और क्या चाहिए
दिलीप कुमार
भले ही प्रेम, अफ़ेयर, लिव-इन रिलेशनशिप, लाँग डिस्टेंस रिलेशनशिप, प्लूटोनिक लव तथा साहचर्य के विभिन्न विकल्प मौजूद हों मगर आज भी भारतीय परिवेश में शादी बेहद ज़रूरी मानी जाती है। उर्दू के एक उस्ताद राइटर ने फ़रमाया था कि “इश्क़ का ताल्लुक़ दिल से होता है मगर शादी-विवाह का ताल्लुक़ तनखाहों से होता है।” पहले शादी-विवाह अपने ही परिवेश में अपने ही नातेदार–रिश्तेदार लगाया करते थे। अब यह काम विवाह की वेबसाइट करवाया करती हैं। अपने परिवार को विवाह खोजने के अंतहीन थकाऊ काम से उद्धार करने के लिए तथा विवाह जैसे ज़रूरी सामाजिक ज़िम्मेदारी को निभाने के लिए एक तरुणी ने अपने परिवार वालों को वर खोजने का कष्ट न देने का निर्णय किया। युवती ने वर खोजने के पारंपरिक तरीक़ों को दरकिनार कर वरमाला डाट कॉम पर एक युवक को स्पॉट किया और उससे प्रणय हेतु चर्चा शुरू की।
युवती–“आपने शादी के लिए एड दिया है ना, आप विवाह करना चाहते हैं? सच में विवाह करके घर-गृहस्थी बसाना चाहते हैं या सिर्फ़ टाइमपास टाइप की बातें सोच रहे हैं।”
युवक–“नहीं-नहीं ऐसा बिल्कुल नहीं है टाइमपास वग़ैरह की बात मत कहिये। मैं सच में विवाह करके अपना जीवन बसाना चाहता हूँ। काफ़ी सीरियस हूँ इसको लेकर। आप अपनी बताएँ।”
युवती–“मैं जल्द ही विवाह करना चाहती हूँ। इसीलिये मैं बहुत लोगों से मिल रही हूँ पर अभी तक कोई ढंग का लड़का मिलता ही नहीं। सही लड़का मिलते ही मैं तुरन्त शादी कर लूँगी।”
युवक–“हाँ, इस लेवल पर आप किसी से कनेक्ट हों और उसके साथ बॉन्डिंग हो जाये तो सब कुछ आसानी से सॉर्ट आउट हो जायेगा। एक बार जब किसी से कनेक्ट हो जाएँगी तो उसके साथ कम्फ़र्टेबल भी हो जाएँगी। जब कम्फ़र्टेबल हो जायेंगी तो शादी की बात अपने आप सही दिशा में आगे बढ़ जाएगी।”
युवती–“कोई कनेक्ट-वनेक्ट नहीं करना मुझे। मुझे ये लव, अंडरस्टैंडिंग, बॉन्डिंग के झमेले में नहीं पड़ना। लव वग़ैरह का अंजाम देख चुकी हूँ मैं। अब मेरी कुछ छोटी-सी कंडीशन्स हैं उन्हीं पर बात होगी, वह पूरी होंगी तो शादी होगी।”
युवक ने मन में लड्डू फूटे। उसने कहा–“बताइये आपकी नज़रों में सही और ढंग का लड़का होने की क्या डेफ़िनीशन है?”
युवती–“पहली बात तो लड़के की अच्छी आमदनी हो। अपना ख़ुद का घर हो, रेंट पर न रहता हो। उसका फ़ैमिली बैकग्राउंड स्ट्रोंग हो, मेरा मतलब है कि पुरखों की ज़मीन-जायदाद भी हो। मुझे हर फ़ैसला लेने की निजी तौर पर आज़ादी हो और मेरी प्राइवेट लाइफ़ में मुझे अपने हिसाब से हर डिसीज़न लेने की फ़्रीडम हो। हाउस मेड के अलावा खाना बनाने वाली एक अलग नौकरानी हो। साल में दो बार लाँग ट्रिप और दो शॉर्ट ट्रिप की वेकेशन हो। लड़का मुझे जॉब करने के लिए फ़ोर्स न करे। मुझसे अकड़कर या तेवर से बात न करे और दहेज़ की बात तो हरगिज़ नहीं होनी चाहिए। लड़का मेरे पास्ट या एक्स के बारे में मुझसे क़भी कोई बात न करे। उस लड़के का कोई अफ़ेयर नहीं होना चाहिए। मुझे शादी के बाद तुरंत बच्चा पैदा करने को फ़ोर्स न करे और हाँ इनलॉज की मेरी मैरिड लाइफ़ में दख़लंदाज़ी बिल्कुल नहीं होनी चाहिये। बस यही सब छोटी-छोटी कंडीशन्स हैं मेरी तरफ़ से।”
युवक–“बस यही कंडीशन्स हैं या और भी कुछ हैं?”
युवती–“नहीं, इन छोटी-मोटी बातों के अलावा बाक़ी चीज़ें मैं एडजस्ट कर लूँगी। लेडीज़ को शादीशुदा ज़िन्दगी में एडजस्ट तो करना ही पड़ता है।”
लड़का–“ओह, आप तो बेहद डाउन टू अर्थ लेडी हैं। आपकी कंडीशन्स तो बहुत कम हैं। आजकल तो शादी में लोग बड़ी-बड़ी कंडीशन्स लगाते हैं शादी में। वैसे अगर लड़के की भी कुछ कंडीशन्स हो तो? लड़के की कौन-कौन सी कंडीशन्स आप मान सकती हैं?”
युवती–“पागल हो क्या तुम? मैं लड़के से शादी कर रही हूँ ये क्या कम है। और क्या चाहिए उसे?”
युवक–“शादी तो लड़का भी कर रहा है न तुमसे। जब लड़का तुम्हारी इतनी कंडीशन्स मान रहा है तो तुम्हेंं भी उसकी कुछ कंडीशन्स माननी चाहिए। क्या तुम लड़के की कोई भी कंडीशन नहीं मानोगी?”
युवती–“तुम सच में पागल हो क्या? मैं कहे जा रही हूँ और तुम बिल्कुल भी नहीं समझते। अरे मैं शादी कर रही हूँ न उससे। उसे और क्या चाहिए?”
युवक–“फिर भी, कुछ तो लड़के की भी कंडीशन्स मानने को तुम्हें सोचना चाहिये।”
युवती–“शट अप। तुम शादी को लेकर बिल्कुल भी सीरियस नहीं हो। तुम सिर्फ़ रिश्तों को टाइमपास समझते हो। मैं तुम जैसे लड़कों को ख़ूब समझती हूँ। तुम्हारे लिए शादी एक खेल की तरह है। मगर मैं शादी को बेहद सीरीयसली लेती हूँ। कोई खेल या बिज़नेस डील नहीं है मेरे लिये शादी। मैं और लड़कियों की तरह नहीं हूँ। अगर शादी की बात करनी हो और सीरियस हो तो आगे बात की जाए। अगर सिर्फ़ टाइमपास की बातें करनी हो तो ब्लॉक कर दूँगी, समझे।”
युवक–“समझ गया दीदी।”
युवती–“शटअप। दीदी होगी तेरी माँ। एक नम्बर का लोफ़र है तू, फ़्रॉड है तू। यू क्रैप, रुक तू अभी। तेरी कम्प्लेन करती हूँ तुझे पुलिस से पकड़वाती हूँ। यू डर्टी माइंड, नानसेंस!” यह कहते हुए युवती ने ब्लॉक कर दिया।
युवक स्तब्ध और अवाक् हो गया उसके दिमाग़ में बस एक ही बात गूँज रही थी—“और क्या चाहिए?”
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
-
- 'हैप्पी बर्थ डे'
- अँधेर नगरी प्लेब्वॉय राजा
- आपको क्या तकलीफ़ है
- इंग्लिश पप्पू
- उस्ताद और शागिर्द
- और क्या चाहिए
- कबिरा खड़ा बाजार में
- कुविता में कविता
- कूल बनाये फ़ूल
- कोटि-कोटि के कवि
- खेला होबे
- गोली नेकी वाली
- घर बैठे-बैठे
- चाँद और रोटियाँ
- चीनी कम
- जूता संहिता
- जैसा आप चाहें
- टू इन वन
- डर दा मामला है
- तब्दीली आयी रे
- तुमको याद रखेंगे गुरु
- तो क्यों धन संचय
- तो छोड़ दूँगा
- द मोनू ट्रायल
- दिले नादान तुझे हुआ क्या है
- देहाती कहीं के
- नेपोकिडनी
- नॉट आउट @हंड्रेड
- नज़र लागी राजा
- पंडी ऑन द वे
- पबजी–लव जी
- प्रयोगशाला से प्रेमपत्र
- फिजेरिया
- बार्टर सिस्टम
- बोलो ज़ुबाँ केसरी
- ब्लैक स्वान इवेंट
- माया महाठगिनी हम जानी
- मीटू बनाम शीटू
- मेरा वो मतलब नहीं था
- मेहँदी लगा कर रखना
- लखनऊ का संत
- लोग सड़क पर
- वर्क फ़्रॉम होम
- वादा तेरा वादा
- विनोद बावफ़ा है
- व्यंग्य लंका
- व्यंग्य समय
- शाह का चमचा
- सदी की शादी
- सबसे बड़ा है पईसा पीर
- सिद्धा पर गिद्ध
- सैंया भये कोतवाल
- हाउ डेयर यू
- हिंडी
- हैप्पी हिन्दी डे
- क़ुदरत का निज़ाम
- स्मृति लेख
- कहानी
- कविता
-
- अब कौन सा रंग बचा साथी
- उस वक़्त अगर मैं तेरे संग होता
- कभी-कभार
- कुछ तुमको भी तो कहना होगा
- गुमशुदा हँसी
- जब आज तुम्हें जी भर देखा
- जब साँझ ढले तुम आती हो
- जय हनुमंत
- तब तुम क्यों चल देती हो
- तब तुमने कविता लिखी बाबूजी
- तुम वापस कब आओगे?
- दिन का गाँव
- दुख की यात्रा
- पापा, तुम बिन जीवन रीता है
- पेट्रोल पंप
- प्रेम मेरा कुछ कम तो नहीं है
- बस तुम कुछ कह तो दो
- भागी हुई लड़की
- मेरे प्रियतम
- यहाँ से सफ़र अकेले होगा
- ये दिन जो इतने उदास हैं
- ये प्रेम कोई बाधा तो नहीं
- ये बहुत देर से जाना
- रोज़गार
- सबसे उदास दिन
- लघुकथा
- बाल साहित्य कविता
- सिनेमा चर्चा
- विडियो
-
- ऑडियो
-