बस तुम कुछ कह तो दो 

01-09-2023

बस तुम कुछ कह तो दो 

दिलीप कुमार (अंक: 236, सितम्बर प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

दिन मेरे न रहें तब यूँ बंजारे 
धधकते-गलते पल-छिन सारे 
कोई राह मिले शायद जीवन की
कोई साध हो पूरी मेरे भी मन की, 
बस तुम कुछ कह तो दो 
 
कोई बात न सुलझती रहकर मौन 
मुझसे बेहतर ये समझा कौन?
मेरी करुणा पर तुमको क्यों हँसी आती 
ज्यों बुझ गई हो जलते दिए की बाती, 
बस तुम कुछ कह . . . 
 
कब तक सहेजोगे मितवा मन की गाँठें
कोई आकर दुख न यूँ ही बाँटे 
शापित गंधर्व सा मैं क्यों हूँ अभिशप्त
जो प्रेम की रण बेदी में हो गया पस्त, 
बस तुम कुछ कह . . . 
 
तुम झूठ-मूठ कह दो या न ही कहो
ये जीवन धूनी-सा सुलग रहा अहो 
कभी कहने को जब पास तुम्हारे होगा कुछ 
तब शायद कोई सुनने को न हो उत्सुक, 
बस तुम कुछ कह तो दो। 

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