जैसा आप चाहें

दिलीप कुमार (अंक: 200, मार्च प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

एक ऐसे दौर में जब झूठ को ख़ूब बढ़ा-चढ़ाकर विज्ञापित किया जाए तो वो क़रीब क़रीब सच होने जैसा लगने लगता है। इस झूठ के क़रीब-क़रीब सच हो जाने के समय में सच को भी सच बने रहने के लिये विज्ञापन की ज़रूरत पड़ती है। अगर ऐसा ना होता तो सरकारें विकास योजनाओं के लिये जितना धन जुटाती हैं, उतना ही धन विज्ञापनों पर ये बताने के लिये लुटाती हैं कि हमने फ़लाँ-फ़लाँ विकास किया है। 

“देख दहलीज़ से काई नहीं जाने वाली 
ये ख़तरनाक सच्चाई नहीं जाने वाली“

निज़ाम और हुक्काम के इस शग़ल से प्रेरणा लेकर मिस्टर राना ने नया विज्ञापन जारी किया:

आलोचना से अमरता के तीन पैकेज उपलब्ध हैं:

  1. डायमंड 

  2. गोल्डेन

  3. सिल्वर 

इसके अलावा हैसियत के हिसाब से भी पैकेज उपलब्ध हैं। 

मिस्टर राना दिल्ली में रहते हैं, दिल्ली जो हर किसी के लिये बहुत मुफ़ीद है, कहते हैं कि जिसे समाज में कहीं भी क़ामयाबी ना मिली हो वो दिल्ली आ जाये, पहले प्रयागराज में पंडागिरी करते थे, लोगों को गंगा स्नान का करके उद्धार करते थे। फिर एक कवयित्री अपने परिवार वालों के साथ गंगा नहाने गयी। दूसरों का उद्धार करते करते एक राना जी अपना ही दिल हार बैठे। राना जी ने कवयित्री के परिवार की न सिर्फ़ प्रयागराज में रुकने, भोजन आदि की व्यवस्था की बल्कि कवयित्री के परिवार को आनंद भवन के सैर पर भेज कर ख़ुद उसके साथ नौका विहार का लुत्फ़ लेने लगे। 

“अहा चंदीली रात तिरिया जब संग होवे।” इस स्वप्न पाश ने ऐसा मदहोश किया राना को कि क्या कहने। कवयित्री के दिल्ली जाते ही उनकी मानो दुनिया ही सूनी हो गयी। कुछ दिनों बाद सब कुछ छोड़-छाड़ कवयित्री के प्रेम में पागल राना दिल्ली पहुँच गए। इस बेमेल हैसियत के प्रेम का वही अंजाम हुआ जो होना था। लुट-पिट कर और पन्द्रह दिन की जेल काटकर जब वो जेल से छूटे तब कई दिनों तक विरह वेदना में मशहूर कवि की कविता गाते रहे:

“मुश्किल है अपना मेल प्रिये, 
ये प्यार नहीं है खेल प्रिये“

लेकिन जब वो अपनी प्रिये से मिलने दुबारा उसके घर गए तो पता लगा कि उनकी प्रिय कवयित्री ने किसी बड़े मंचीय कवि से शादी कर ली है और हनीमून मनाने विदेश गयी हैं जहाँ वो अब काव्य पाठ करेंगी वो भी जोड़े में। 

बस उसी दिन से उन्हें कविता और उसके कहने वालों से चिढ़ हो गयी और उन्होंने क़सम खायी कि जिस तरह उन्हें एक कवयित्री ने ठगा है, वो भी कवयित्रियों को ठगेंगे। और जिस तरह एक नामी कवि इनकी प्रिये को ले उड़ा है उनसे वे भी कवियों से बदला लेंगे और ढेर सारे नामी कवि पैदा करेंगे:

“मछलियों में खलबली है अब सफ़ीने
उस तरफ़ जाने से कतराने लगे हैं 
मौलवी से डाँट खाकर अहले मकतब 
उस तरफ़ जाने से कतराने लगे हैं” 

उस तरफ़ तो राना साहब नहीं गए पिटाई के डर से मगर उस तरफ़ उनसे हुए छल की कसक उनके मन में कहीं बहुत गहरे पेवस्त हो गयी थी। 

हुनर उनमें था ही, दिल्ली जैसी बड़ी जगह में उन्होंने उसे फैलाव दिया और फिर बन गया उनका पहला वेंचर—“कविता सेवा समिति “

इसके ज़रिये वे लोगों को कवि बनाते थे, जो लोग फ़ेसबुक पर हाथ पाँव फड़फड़ाते रहते थे, राना जी की संस्था उनसे सम्पर्क करती थी और उन्हें मेल करती थी— 

“कविता के क्षेत्र में आपके अतुलनीय योगदान को देखते हुए हमारी संस्था ने निर्णय लिया है कि आपके कार्य को एक मंच दिया जाय। इस हेतु आपको काव्य पाठ हेतु दिल्ली आमंत्रित किया जाता है, इस अवसर पर हम आपको काव्य शिरोमणि सम्मान से सम्मानित भी करेंगे। कार्यक्रम दिन में दो बजे शुरू होकर पाँच बजे समाप्त हो जायेगा। अतः आपसे अनुरोध है कि उसी के हिसाब से पधारें। 

नोट—यह एक संसाधन विहीन साहित्य को समर्पित अव्यावसायिक संस्था है, अतः इसे संचालित किए रखने हेतु आपसे सहयोग की अपेक्षा है। अतः तीन हज़ार रुपये का सहयोग शुल्क निम्नलिखित खाता संख्या में जमा कराने का कष्ट करें। 

सहयोग शुल्क जमा करने को ही आपके कार्यक्रम में आने की सहमति मान ली जायेगी। 

कवि /कवयित्री करे तो क्या करे, सम्मान छोड़ा ना जाये और रक़म देते प्राण जाये। 

दस में से आठ लोग इस ईमेल के जवाब में हामी दे देते। पहले सहयोग राशि जमा करते और फिर उसके बाद अपने ख़र्चे पर दिल्ली जाते, कार्यक्रम का समय ऐसा था कि जो लंच बाद शुरू होता और डिनर से पहले ख़त्म हो जाता तो भोजन का सवाल ही नहीं, सो एक कप चाय और एक ट्रॉफी के साथ बन्दा जब उस सामुदायिक हाल से निकलता तब उसे लगता कि वाक़ई कवि या कवयित्री होना कितना दुष्कर कार्य है:

“न सवाले वस्ल, न अर्जे ग़म, न हिकायतें, न शिकायतें 
तेरे अहद में दिले ज़ार के सभी इख़्तियार चले गये
ये हमीं थे जिनके लिबास पर सरे-रू सियाही लिखी गयी
यही दाग़ थे सजा जो सजाके हम सरे बज़्मे यार चले गए” 

ठगे हुए कवि और कवयित्री को लौटते हुए देखना राना साहब को बहुत सुख देता है, उन्हें लगता है मानो उनका बदला पूरा हो गया। 

आदमी को जब कविता का कीड़ा काट ले तो उम्र भर पीछा नहीं छोड़ता, मनुष्य जानता है कि शरीर भले ही नश्वर है इसलिये वो अमरता के सारे जतन करता है और ऐसी योजनाओं की कविता अंतिम पनाह गाह है। 

इन्हीं के लिये राना साहब ने आलोचना से अमरता पाने के कपाट खोले हैं। उनका आलोचना का ईमेल का मज़मून इस तरह होता है— 

“आदरणीय कविवर /कवयित्री 

आप हिंदी साहित्य के प्रतिष्ठित हस्ताक्षर हैं। हमारा सौभाग्य है कि आपकी कविताई को प्रसिद्ध करने में हमारे मंच का सहयोग रहा है। हमारे मंच पर आपके किये गए काव्य पाठ और प्राप्त पुरस्कार के बाद आपके यश में उत्तरोत्तर वृद्धि हुई, हम इस बात से गद्‌गद्‌ हैं और और इस दिशा में प्रयास कर रहे हैं कि आपका नाम हिंदी साहित्य में युगों-युगों तक तक आदर से लिया जाये। जैसा कि पूर्व का इतिहास रहा है कि कविकर्म करते रहने की तक ही हिंदी समाज अपने कवियों और कवयित्रियों को याद रखता है, लेकिन आलोचक कवित्त की मीमांसा करके उसे अमर बना देते हैं। आप ये देखें कि आज भी हिंदी के तमाम कवि और कवयित्रियाँ पूर्व में की गयी आलोचनाओं के कारण ही ज़िन्दा हैं, जबकि उनसे अधिक प्रतिभाशाली कवि और कवयित्री भुला दिए गए हैं। अतः हमारी संस्था ये प्रस्ताव करती है कि वो आपके कार्य को सुधि आलोचकों तक पहुँचाएँ ताकि आपकी कविता की कीर्ति की सुगंध युगों-युगों तक महकती रही। 

प्रस्ताव निम्न प्रकार के हैं:

1. डायमण्ड—

इस योजना में देश के शीर्षस्थ आलोचक जो स्वयं सृजनात्मक साहित्य के लेखन का त्याग कर चुके हैं, वे आपकी पुस्तक को कालजयी कहेंगे, कुछ तो ये भी कहेंगे कि मैंने ऐसी कृति देख ली है कि अब मैं चैन से मर भी सकता हूँ। जिस विचारधारा का आलोचक होगा उस विचार धारा की यदि कोई राज्य सरकार सत्ता में होगी तो तो पाठ्यक्रम में लगवाने की शत प्रतिशत सम्भावना। 

सहयोग राशि: बीस हज़ार रुपये मात्र 

2. गोल्डन—

इस योजना में आलोचक वही होंगे जो स्वयं भी सर्जक हैं और साहित्य की वर्तमान उठा-पटक से सदैव अपडेट रहते हैं। इसमें वर्तमान मीडिया के लगभग सभी प्लैटफ़ॉर्म पर आपकी फोटो, वीडियो, और पुस्तक के बारे में चर्चा करेंगे। ये अपनी किताब आपको देंगे बस आपको इनकी किताब के साथ फोटो लगानी होगी अपने सोशल मीडिया पर। उस वर्ष के किसी ना किसी साहित्यिक पुरस्कार को दिलाने की गारंटी दी जाती है। बहुत ही क्लोज़ व्हाट्सप ग्रुप में शामिल किया जायेगा जिसमें सभी पुरस्कारों, विवादों के बारे पल-पल की सूचना दी जायेगी तथा आलोचक बनने की ट्रेनिग भी दी जायेगी। 

सहयोग राशि: दस हज़ार रुपये मात्र 

3. सिल्वर—

ये एक विशेष योजना है जो कवयित्रियों और अल्प आय के कवियों हेतु है। इस योजना में फ़ेस बुक, इंस्टाग्राम, वेबसाइट्स में आपकी रचनाओं पर समीक्षाएँ प्रकाशित की जाएँगी। प्रतिदिन कम से कम दस व्हाट्सअप ग्रुप में आपकी रचना को पोस्ट किया जाएगा और कम से कम पाँच लोगों से उस रचना पर कमेंट कराया जायेगा। ये प्रक्रिया निरन्तर एक माह तक दोहरायी जायेगी और एक माह बाद आपको पोस्ट और कमेंट के स्क्रीन शॉट भेजा जाएगा। हमारी संस्था के फ़ेसबुक पेज पर आपको लाइव आने का मौक़ा दिया जायेगा और वेब के सम्बोधनों में आपकी भागीदारी सुनिश्चित की जायेगी। कम से कम पाँच आन लाइन पुरस्कार के सर्टिफ़िकेट देने की गारंटी दी जाती है। 

सहयोग राशि: पाँच हज़ार रुपये मात्र। 

नोट—सहयोग राशि प्राप्त होते ही योजना पर कार्य शुरू हो जायेगा, यदि किसी योजना का चयन कर लिया है तो और बाद में बढ़ी हुई सहयोग राशि जमा करने पर व्यक्ति को उसके सहयोग शुल्क के अनुसार योजना में अपग्रेड कर लिया जायेगा। 

एक बार सेवा का अवसर दें ताकि हम आपको कवित्त आलोचना से अमरता के मार्ग पर प्रशस्त कर सकें। 

सादर, 

हिंदी सेवी राना। 

यदि कोई उनसे पूछ लेता कि आप ऐसा क्यों कर रहे हैं इससे आपको क्या हानि–लाभ है तो उसके उत्तर में वे अपने आदर्शों की दुहाई देते हुए अंत में एक चौपाई लिखते:

“जारे जागे सुभाउ हमारा 
अनभल देख न जाय तुम्हारा"

अपनी बात में अपने सेवा भाव को रखकर सामने वाले को अपनी साहित्यिक सेवाओं से उलटा कृतज्ञ करने का प्रयास करते। 

और यदि कोई पलट के पूछ लेता—

“इस पैकेज में कुछ कम ज़्यादा नहीं हो सकता?” 

तो वो मुस्कराकर कहते—

“जैसा आप चाहें।” 

आपका हिन्दी सेवी राना।

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