ख़ून सनी रोटी
दिलीप कुमारदो दिन से जुम्मन दो निवाले भी ठीक से नहीं खा पा रहा था। चाय-पर-चाय पीता और पेशाब जाता। उसके बाद बीड़ी-पर-बीड़ी पीता जाता और बेतरह खाँसता था। उसकी खाँसी इतनी देर तक चलती थी कि लगता था फेफड़ा उछलकर मुँह से बाहर आ जायेगा। जमीला उसे इस तरह खाँसता देखकर बुरी तरह से डर जाती लेकिन वो जानती थी कि डरे वो दोनों हैं।
खेती-किसानी को लेकर चल रहे आंदोलन के दरम्यान उनको काम मिल गया था। वो मंगोलपुरी से कपड़े लाते थे और सिंधु टीकरी बॉर्डर पर टोपियाँ सिला करते थे, जैसे-जैसे धरने की भीड़ दिनों-दिन बढ़ती गयी, वैसे-वैसे वो दोनों कुर्ते-पायजामे भी सिलने लगे। आंदोलन बढ़ता गया तो उनके लिये आंदोलन वालों की तरफ़ से एक सिलाई-मशीन का भी प्रबंध कर दिया गया था। वो दोनों कुर्ते तैयार करते जाते थे और आंदोलन करने वाले लोग उन्हें आस-पास के गाँवों के हर ग़रीब-ग़ुरबा को पहना देते थे ताकि हर कोई उन्हें आंदोलन का कार्यकर्ता लगे, लेकिन आंदोलन ख़त्म हुआ तो जुम्मन की हवाइयाँ उड़ने लगीं।
तभी उसी टोली का एक बन्दा आया और बोला, “जुम्मन टोपी और कुर्ते सिल लो और ये लो पैसे, जाकर ब्लड बैंक से ख़ून ख़रीद लाना, हर कुर्ते और हर टोपी पर ख़ून लगा होना चाहिये।”
“ख़ून क्यों साहब, आप तो खेती-रोटी की बातें किया करते थे, फिर अचानक ख़ून-ख़राबा क्यों?” जुम्मन ने सकपकाते हुए पूछा।
बन्दा हँसते हुए बोला, “ख़ून-ख़राबा तो होता ही रहता है लेकिन तुम इन सब पचड़ों में न ही पड़ो तो बेहतर है। रहा सवाल तुमने जो बात पूछी। दरअसल वो ऐसा इसलिये है कि इस बार हम जिस आंदोलन वालों को माल सप्लाई कर रहे हैं, उन लोगों ने ख़ून सने कुर्ते ही माँगे हैं। शायद मीडिया को दिखाने या मुआवज़ा हासिल करने का कोई जुगाड़ होगा उन लोगों का। हमें क्या हमें पैसा मिला, ऑर्डर मिला, हमें अपना ऑर्डर पूरा करना है। अब ये तो वो लोग जानें कि उनकी रोटी आटे में पानी मिलाकर तैयार होगी या आटे में ख़ून मिलाकर।”
ये कहकर सिगरेट का धुआँ उड़ाता हुआ और जुम्मन को कुछ नोट थमाकर वो बन्दा चला गया।
जुम्मन ने जमीला को कुछ पैसे दिए और कहा, “तू जाकर कुर्ते के कपड़े ले आ, मैं ख़ून का जुगाड़ करता हूँ, ब्लड बैंक से ख़ून ख़रीदने से बेहतर है कि मैं ख़ुद अपना ख़ून निकलवा दूँ। ख़ून ख़रीदने के पैसे बच जाएँगे तो कुछ दिन और हमारी रोटी चल जायेगी।”
जमीला ने बड़े अविश्वास से जुम्मन को देखा, न वो कुछ बोल पा रही थी और ना ही कुछ समझ पा रही थी, अलबत्ता हैरानी उसके चेहरे पर नुमायाँ थी और आँसुओं से उसकी आँखें झिलमिला रही थीं।
जुम्मन के पास भी जमीला के सवालों का कोई जवाब ना था। उसने बीड़ी का लंबा कश लिया और फिर बेतरह खाँसता हुआ निकल गया।
जमीला उसे जाते हुए देखती रही कि उसका पति ख़ून बेचने जा रहा है। अचानक जमीला को लगा कि उसकी आँखों में नमकीन आँसुओं के साथ गर्म ख़ून भी उतर आया है
2 टिप्पणियाँ
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बेहद संवेदनशील विषय
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तो यह है आन्दोलनों की सच्चाई , लोमहर्षक!!
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