जब आज तुम्हें जी भर देखा 

15-05-2023

जब आज तुम्हें जी भर देखा 

दिलीप कुमार (अंक: 229, मई द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

जब आज तुम्हें जी भर देखा 
कोई तेज तुम पर आलोकित था
मेरा रोम-रोम यूँ पुलकित था
मेरे दिल की धड़कन थी बेक़ाबू
तेरी आँखों में था क्या कोई जादू
मन के मंदिर में है तब से हलचल 
जब आज तुम्हें जी भर देखा 
 
तब थम ही गया था समय का पहिया 
बादल-बिजली की ज्यों हुई हों गलबहियाँ 
मैं व्यर्थ ही अब तक रोता रहा 
डगमग जीवन नैया किसी तरह खेता रहा 
तुमसे ही जुड़ी मेरी विधि की लेखा, 
जब आज तुम्हें जी भर देखा 
 
यूँ तो तुम्हें देखा करता था कब से 
पर आज मानों पल में सदियाँ बीतीं 
चंचल चितवन और तुम्हारे मुस्काते अधर 
जैसे कोई प्राणदायिनी उतरी हो धरती पर 
और प्राण खींच ले चली हो हँसकर
जब आज तुम्हें जी भर देखा 
 
जब देख ही लिया ये रूप तिलिस्म 
गिरवी हो गया मेरा रूप और जिस्म 
ये मोह-नेह के हैं मनभावन धागे 
कोई इनकी पकड़ से कब तक भागे 
जीवन मिलेगा या मृत्यु का वरण
तुम ही तय करो मेरी क़िस्मत 
जब आज तुम्हें जी भर देखा। 

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