लॉस्ट एंड फाउंड

15-03-2022

लॉस्ट एंड फाउंड

दिलीप कुमार (अंक: 201, मार्च द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

मुंबई के उपनगर मीरा रोड के बैंजो लेन में पहले तल पर “जाज” ओपन एयर रेस्टोरेंट की ये एक उदास शाम थी। इस रेस्टोरेंट में सब कुछ खुला ही था यहाँ तक किचन भी, सिर्फ़ वॉशरूम ढके-मूँदे थे। “जाज” रेस्टोरेंट की ख़ासियत ये थी कि यहाँ गीत-संगीत हमेशा गुंजायमान्‌ रहता था। उनके पास पेशेवर गाने वाले लोग थे जो कस्टमर की डिमांड पर गाने गाया करते थे और हर वीकेंड पर एक स्पेशल कलाकार का शो होता था, वो कलाकार अच्छे मगर सस्ते होते थे, ज़ाहिर है हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री में काम पाने की कोशिश कर रहे लोगों मजमा यहाँ जमा होता था। 

मीरा रोड आर्ट और कल्चर का उत्तरी मुंबई में नए केंद्र के तौर पर उभर रहा था। सबसे निचले लेवल के कलाकारों से लेकर थोड़े बहुत क़ामयाब कलाकार भी यहाँ इकट्ठे होते थे। 

टीवी अभिनेता, सिंगर, म्यूज़िक से जुड़े लोग काम-धाम की मीटिंग के लिये “जाज” रेस्टोरेंट को मुफ़ीद मानते थे। 

कहने को ये मीरा रोड की एक अच्छी जगह थी ये लेकिन पहले माले पर स्थित इस रेस्टोरेंट के नीचे की सड़क पर गाड़ियों के हॉर्न की जो चीख-पुकार मचती थी, उससे शायद ही किसी संगीत प्रेमी को तसल्ली से कुछ सुनने को मिल पाता होगा। लेकिन यही तो मुम्बईया ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा था कि सुकून किसी को नहीं और सुकून की तलाश सभी को रहती थी। 

मंगेश पालगांवकर को ये जगह इसलिये ख़ास पसंद थी क्योंकि मीरा रोड की इन्हीं गलियों में उसका बचपन बीता था, सो वो गाहे-बगाहे इस जगह आने की गुंजाइश निकाल ही लिया करता था। हालाँकि उसके बचपन की कोई निशानी अब बाक़ी नहीं था, उसका स्कूल टूटकर शॉपिंग माल बन चुका था, उसका चाल वाला किराए का घर अब बारह मंज़िली बिल्डिंग में तब्दील हो चुका था। लेकिन फिर भी कोई कशिश थी जो उसे इस इलाक़े में खींच लाती थी। 

अपने बचपन और किशोरावस्था के दिनों को याद करते हुए उसने एक सिगरेट निकाल कर होंठों से लगा ली। 

मंगेश ने सिगरेट के कुछ ही कश लगाए थे तब तक वेटर उसके पास आकर खड़ा हो गया। वेटर को देखकर मंगेश अपना सिर ऊपर किया तो वेटर उसे इशारे से साइन बोर्ड दिखाया, जिस पर लिखा था:

“टेबल पर बैठ कर शराब और सिगरेट पीना सख़्त मना है”।

मंगेश सिगरेट लेकर बाहर चला आया, सड़क पर। वो वहीं खड़ा होकर सिगरेट पी रहा था, तभी एक 36-37 के उम्र की एक लेडी फ़ोन पर चीखती हुई आई–

“पेमेंट नहीं होगा तो मेरा क्या होगा मैं तो रोड पर आ जाऊँगी। मेरी इंसल्ट होने से अच्छा है कि मैं अब सुसाइड ही कर लूँ। लेकिन मैं सुसाइड करूँगी तो बहुत लोगों को लेकर जाऊँगी। सुना तुमने लालवानी को बता देना। मैं कुछ भी कर सकती हूँ।” 

तब तक उधर से फ़ोन कट होने की आवाज़ आई। उधर से फ़ोन कटते ही औरत झल्ला के कहने लगी,
“रासकल्स, बिच्च कहीं के।”

ये कहते हुए वो तेज़ी से जाकर मेज़ पर जा बैठी और हाइपरटेंशन की दो टेबलेट निकालकर खाईं। उसने आँख बंद कर लीं टेंशन के मारे। 

तनाव से आँखें बंद करके दो टेबलेट दवाई के निगल चुकी महिला ने क़रीब पाँच मिनट यूँ ही चुपचाप निकाल दिए। 

उसकी जिस्मानी तकलीफ़ें कुछ कम हुईं तो उसे अतीत ने आ घेरा। वो अपनी वर्तमान ज़िन्दगी से नाख़ुश थी तो उसे अपने अतीत का रह-रह कर वही दृश्य याद आता है जब उसने एक बड़ा निर्णय लेते हुए अपनी पुरानी ज़िन्दगी से छुटकारा पाते हुए ये ज़िन्दगी चुनी थी। 

उसे वो दिन अक़्सर याद आता था जब एक छोटे से कमरे में उसका सामान बिखरा पड़ा था जिसे वो बड़ी तेज़ी से बैग और सूटकेस में पैक कर रही थी और एक पुरुष सिगरेट के लंबे कश लगाते हुए बड़े असमंजस में उसे देखे जा रहा था, लेकिन उसके मुँह से बोल नहीं फूट पा रहे थे। 

उस महिला को आँखें बंद किये देखकर मंगेश चौंक पड़ा। वो उम्मीद कर रहा था कि वो महिला आँखें खोले, उसे देखे, कुछ प्रतिक्रिया दे तभी वो अपना अगला क़दम उठाए। 

मंगेश ने सोचा कि अगर वो महिला उसे देखकर ठीक ढंग से बर्ताव करेगी तो वो भी हाय-हैलो कह देगा और अगर उस महिला ने कुछ ग़लत ढंग या ग़ुस्से से उसे देखा तो वो भी उसके पास नहीं जाएगा। उसे देखकर मंगेश को याद आया कि ऐसे ही वो आठ साल पहले भी गयी थी तब उसने यंग मंगेश को “रास्कल” कहा था और मंगेश ने उसको थप्पड़ जड़ते  “बिच्च” कहा था। 

अंततः उससे लड़-झगड़ कर वो फ़्लैट छोड़ कर चली गयी थी। 

पाँच मिनट तक उस महिला के आँखें ना खोलने पर मंगेश का धैर्य जवाब दे गया। वो अपनी टेबल से उठकर उस महिला की टेबल पर आ गया और कुर्सी खींचकर बैठने की कोशिश करने लगा। कुर्सी खींचने की आवाज़ से उस महिला की तन्द्रा टूट गयी। 

उस लेडी ने जब आँख खोली तो सामने के टेबल पर मंगेश को बैठा पाया। पहले तो लेडी के चेहरे पर बहुत हैरानी आई लेकिन फिर वो फीकी हँसी हँसते हुए उसने कहा, “तुम, इतने बड़े शेयर मार्केट के एनालिस्ट इस मामूली जगह पर। तुम्हें तो अपनी शाम किसी फ़ाइव स्टार के बार में बितानी चाहिए।” 

मंगेश ने भी हँसते हुए कहा, “हाँ अमृता गुप्ता नाम की एक टॉप मॉडल को देखने के लिये पीछे-पीछे चला आया।” 

ये सुनकर वे दोनों हँसने लगे। दोनों की परेशानियाँ कुछ पल के लिये काफूर हो गयीं और उनके चेहरों पर उल्लास नज़र आने लगा। 

एक वेटर आया, उसने कहा, “आर्डर प्लीज़।” 

मंगेश मुस्कुराते हुए कहा, “मुझे तो चाय ही पिला दो, मैडम से पूछ लो वे क्या पियेंगी। उनके स्टेटस के लायक़ इस रेस्टोरेंट में कुछ मिलता भी है या नहीं?” 

“ब्लैक कॉफ़ी विदाउट शुगर, और साहब के लिये चाय।”

फिर मंगेश की तरफ़ मुख़ातिब होते हुए अमृता ने कहा, “टॉप मॉडल इस चिल्लमचिल्ली वाली थर्ड क्लास रेस्टोरेंट में 15 रुपये वाली काफ़ी पीने नहीं आती है। किस एंगल से मैं तुमको मॉडल लग रही हूँ। 37 की एज में आंटी बन चुकी हूँ। शुगर, ब्लड प्रेशर, हाइपरटेन्शन, कोई भी ऐसी बीमारी नहीं है जो मुझको ना हो। पिछले आठ सालों में ही मैं बीस साल बूढ़ी हो गयी हूँ। जवानी तो चली गयी, मैं कब चल दूँ पता नहीं।”

ये कहते हुए अमृता ने लम्बी साँस छोड़ी। 


मंगेश ने उसके चेहरे को एकटक देखते हुए कहा, “क्यों वो तुम्हारा मेहरोत्रा कहाँ गया जो कहता था कि तुमको टॉप मॉडल बनाएगा, बाद में एक्टिंग के असाइनमेंट्स भी दिलवायेगा। उसी सब के लिये तो घर छोड़ा था तुमने।” 

अमृता ने थोड़ी देर तक चुप्पी साधे रखी। मंगेश की बेचैनी और उकताहट देखकर धीरे से बोली, “अब ये सब मत पूछो, इतना समझ लो कि जवान लड़की में एक रस होता है, उस रस को हर कोई पीना चाहता है। जब तक आदमी को वो रस नहीं मिलता वो कुत्ते की तरह लार टपकाता रहता है, एक बार आदमी वो रस पी लेता है तो फिर उसके लिए वो लड़की एक ठूँठ रह जाती है, ख़ाली ड्रम की तरह। जैसे मैं तुम्हारे लिये हो गयी थी, तुम्हारी नज़रों से उतर गयी थी। मर्दों की एक आदत होती है। अपनी उसी आदत के हिसाब से मैं सबके लिये बेकार होती चली गयी। तुम कहो रितिका रस्तोगी के साथ ख़ुश तो हो ना तुम? उसने तो तुमको बच्चा दे ही दिया होगा। कितने बच्चे हैं तुम दोनों के?”

ये कहते हुए अमृता ने मंगेश के चेहरे पर आँखें गड़ा दी। 

तब तक वेटर चाय और काफ़ी ले आया। वो कप रखकर चला गया; दोनों दो-तीन घूँट पीते हैं फिर अमृता ने कहा, “आई एम सॉरी, मुझे कोई हक़ नहीं बनता तुम्हारी लाइफ़ के बारे में पर्सनल सवाल करने का, ये तुम्हारी ज़िन्दगी है जैसे चाहो जियो,” कहते हुए अमृता ने सर झुका लिया और धीरे-धीरे काफ़ी सिप करती रही। 

मंगेश थोड़ी देर तक मुस्कराता रहा फिर हँसते हुए कहा, “एक बेबी गर्ल है 5 साल की लेकिन वो रितिका और उसके पति की बच्ची है, मेरी नहीं। मेरे और रितिका के बीच कभी कुछ था ही नहीं। उसने सिर्फ़ मेरे आइडियाज़ पर पैसे लगाए थे शेयर मार्केट से प्रॉफ़िट कमाने के लिये। जब शेयर मार्केट क्रैश हुआ तो मैं भी बैंकरप्ट हो गया और उसका भी सारा पैसा डूब गया।”  कहक़र मंगेश चुप हो गया। 

अमृता ने सिर ऊपर उठाया और सवालिया नज़रों से उसे देखनी लगी। 

थोड़ी देर ठहरकर मंगेश ने शब्दों को चबाते हुए बोलना शुरू किया, “शुरू में उसको प्रॉफ़िट हुआ तो तो वो ख़ुश थी। फिर उसने अपनी सारी पर्सनल सेविंग्स मुझे शेयर बाज़ार में लगाने को दे दी। जब मार्केट क्रैश हो गया और उसके पैसे के साथ मेरा भी पैसा डूब गया तो वो मुझे ही दोषी समझने लगी कि मेरी ही ग़लती या लापरवाही से पैसा डूब गया है। उसने सिर्फ़ अपनी पर्सनल सेविंग्स मेरे ज़रिये शेयर मार्केट में इन्वेस्ट करवाई थी; सबसे छुप-छुपा के, सिर्फ़ यही था कोई अफ़ेयर वग़ैरह नहीं। उसकी अपनी ज़िन्दगी थी उसने बाद में शादी कर ली। अब वो और उसका हसबैंड मिलकर भयंदर में कोई कोचिंग क्लास चलाते हैं। मैंने उसका मोबाइल नम्बर ब्लॉक कर रखा है लेकिन इतने साल बीत जाने के बावजूद अपने हसबैंड के चोरी-चोरी वो नए-नए नम्बरों से मुझे काल करती है और मुझसे अपने पैसे माँगती है। प्रॉफ़िट के सब साथी लॉस में सिर्फ़ मैं दोषी। अब मैं उसको पैसे कहाँ से दूँ? जब सारी कैपिटल डूब गया तो मैंने शेयर मार्केट भी छोड़ दी। लेकिन इस शेयर मार्केट से अब भी मेरा पीछा नहीं छूट रहा है। दुनिया की नज़रों में चोर, बेईमान भी बना। इसी वजह से तुम्हारे जैसी वाइफ़ भी मुझे छोड़ गयी। इस मार्केट ने मेरा सब कुछ छीन लिया अमृता।” 

“तो तुम अब करते क्या हो?” अमृता ने हौले से पूछा। 

“वसई की एक बेकरी के प्लांट में मैनेजर हूँ। इधर एक क्लाइंट से कलेक्शन के लिये आया था, वहीं प्लांट के बाजू में रहता भी हूँ और तुम?” 

“मॉडल्स को तैयार करती हूँ। उनकी लिपिस्टिक, क्रीम, हेयर स्टाइल, मेकअप वग़ैरह ठीक करती हूँ। लेकिन वो काम भी नहीं मिलता बराबर। लोग काम तो करवा लेते हैं लेकिन साल-साल भर पेमेंट नहीं देते। कटोरा लेकर सड़क पर आ जाने या सुसाइड कर लेने का ही रास्ता बचा है अब तो। देखो कब तक गाड़ी चलती है?” 

ये कहक़र अमृता सुबक-सुबक कर रोने लगी। 

मंगेश ने उसको रुमाल दिया लेकिन उसने अपने पर्स से रुमाल निकालकर अपने आँसू पोंछे और फिर कहा, “बहुत प्रॉब्लम है मंगेश मेरी लाइफ़ में। मेरी हेल्थ भी ठीक नहीं रहती। अकेली लेडी को दुनिया मुफ़्त का माल समझती है। मेरा जी भी बहुत घबराता है अकेले रहने की वजह से।” 

मंगेश ने कोमल स्वर में कहा, “अकेले रहने में सबको प्रॉबल्म होती है। इसीलिये मैंने भी दहिसर का रूम छोड़ दिया था और वसई शिफ़्ट हो गया था। उधर इलाहाबाद वाले शुक्ला जी के साथ रहता हूँ। बड़े ही धर्म-कर्म वाले और पुजारी टाइप के आदमी हैं। दहिसर का रूम ख़ाली पड़ा है, एक अपने जोगदंड चाचा हैं वही अपनी गारमेंट फ़ैक्ट्री के कुछ कपड़े वहाँ रखते हैं।” 

अमृता ने सिर झुकाकर कहा, “ठीक है, अगर रेंट ना दे पाने की वजह से मकान मालिक मुझे निकाल दे तो तुम उन कपड़ों के ढेर के बीच मुझे रहने के लिये थोड़ी सी जगह दे देना।” 

दोनों चुप हो गए, बड़ी देर तक सन्नाटा रहा फिर मंगेश ने अपना हाथ बढ़ाकर अमृता के हाथ पर रख दिया। अमृता ने पहले तो नज़रें उठाकर मंगेश को देखा, फिर नज़रें झुका लीं। 

मंगेश मुस्कुराया और कहने लगा, “सर छुपाने की जगह मिल जाएगी लेकिन शर्त ये है कि तुमको मकान मालिक से अफ़ेयर करना होगा और कपड़ों के ढेर में कभी-कभी कपड़े उतर भी जाया करेंगे,” ये कहते हुए मंगेश ने शरारत से आँख मारी। 

अमृता नज़रें झुका लीं और हँसते हुए कहने लगी, “फिर से वही सब, लाइफ़लांग यही गेम चलता रहेगा क्या?”

मंगेश ने हँसते हुए कहा, “लाइफ़ इटसेल्फ़ इज़ ए गेम ऑफ़ लॉस्ट एंड फाउंड।” 

उस सिंदूरी शाम में उन दोनों के चेहरे उल्लास से दमक उठे। 

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