यूँ भी कोई

01-02-2021

यूँ भी कोई

सुशील यादव (अंक: 174, फरवरी प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

अँधेरे में यादों की परछाई रखता है
यूँ भी कोई  दूर की बीनाई रखता है
 
जिसके हाथ खुले  पैर मगर  हो ज़ंजीरें
बातें माकूल कहाँ जग- हँसाई रखता है 
 
देख फटे हाल उसे  कोई कहता भी क्या
वो जेबों की यूँ  नादान सिलाई रखता है
 
हमको भी आता था हुनर सीने-पिरोने का
पर वही यक़ीनन वाजिब तुरपाई रखता है
 
हम तो ढूँढ़ रहे, टूटे रिश्तों के वजूद 
मन ये कबाड़ बुनी चारपाई रखता है
 
सब ने उनको देखा है, दूर शहर से आते 
कहने को सरमाया फ़कत चटाई रखता है

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