शहादत के बाद

01-08-2021

शहादत के बाद

सुभाष चन्द्र लखेड़ा (अंक: 186, अगस्त प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

उस गाँव के दो परिवारों में पुरखों के ज़माने से खेतों को लेकर जब तब झगड़े होते रहते थे। यूँ पहले परिवार के मुखिया 'क' ऐसे झगड़ों में कोई दिलचस्पी नहीं रखते थे लेकिन दूसरे परिवार का मुखिया 'ब' अपने दो लफंगे बेटों के साथ मिलकर जब-तब झगड़े की वज़ह तलाशता रहता था। ख़ैर, सन् 2013 में 'क' का बेटा सेना में अफ़सर बना तो उसका असर दूसरे परिवार पर भी पड़ा। अब दूसरे परिवार की गुंडई पर बिना कुछ कहे-सुने अंकुश लग गया था।

'क' का बेटा सेना में अफ़सर बनने के बाद जब पहली बार गाँव लौटा तो उसने 'ब ' के भी चरण स्पर्श किए। कुछ वर्षों तक ऐसा लगा जैसे इन दोनों परिवारों के बीच अब दुश्मनी ख़त्म हो चुकी है। बहरहाल, पिछले छह वर्षों के दौरान इन दोनों परिवारों के बीच जो सद्भाव नज़र आ रहा था, वह दो महीने पहले यकायक समाप्त हो गया। जैसे ही दो महीने पहले 'क' का बेटा सीमा पर शहीद हुआ, 'ब' और उसके लफंगे बेटे फिर से अपने पुराने ढर्रे पर लौट आए। अभी 'क' के शहीद बेटे की चिता की आग ठंडी भी नहीं हुई थी कि उन्होंने 'क' के खेतों से सटे अपने खेतों की मेढ़ों को सरकाना शुरू कर दिया। 

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