सौ का पत्ता

01-05-2021

सौ का पत्ता

सुभाष चन्द्र लखेड़ा (अंक: 180, मई प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

सुबह उठकर वह सोच ही रहा था कि आज वह अपनी पेट की आग को कैसे बुझाएगा कि तभी उसे एक व्यक्ति अपनी तरफ़ आते दिखाई दिया।

उस व्यक्ति के दाएँ, बाएँ और पीछे उसकी बस्ती के लगभग तीस लोग भी थे। नज़दीक आकर वह आदमी बोला, “पास के मैदान में कुछ देर में बड़े नेता जी आने वाले हैं। तुम्हें बीच-बीच में ’भारत माता की जय’ और”वन्दे मातरम्’ के नारे लगाने हैं। सौ का पत्ता मिलेगा।”

यह सुनकर वह गर्दन हिलाकर उसके साथ हो लिया। वह मैदान की तरफ़ जाते हुए सोच रहा था कि मैदान की सभा समाप्त होने के बाद वह सीधे पुल के पास वाले ढाबे में जाएगा और एक दोसा, दो इडली और दो बड़े खाएगा। ख़ैर, वह उन सबके साथ मैदान में पहुँचा तो पता चला कि नेता जी दो घंटे देरी से आएँगे।

बड़े नेता जी ग्यारह बजे के लगभग आए। उनसे पहले दर्जन भर छुटभैय्ये नेता बोले। सभी ने  नारे लगाए तो उसे भी लगाने पड़े। कोई एक बजे बड़े नेता जी बोले। उन्होंने अपने भाषण के शुरू और अंत में बड़े जोश-ख़रोश से नारे लगाए। उनकी आवाज़ बता रही थी कि उन्होंने सुबह भरपेट खाया होगा। उसने भी ज़ोर से नारे लगाने की कोशिश की किंतु उसकी कोशिश सफल नहीं हुई।

बड़े नेता जी के भाषण के पूरा होते ही वह सभा समाप्त हो गई। उसे अब भूख परेशान करने लगी थी लेकिन उसे वह आदमी कहीं नज़र नहीं आया जो उसे लाया था। एक घंटे बाद उसे किसी ने बताया कि वह तो नेता जी के साथ ही कहीं दूसरी सभा के लिए रवाना हो गया था।      

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