समझ नहीं आता

01-02-2021

समझ नहीं आता

सुशील यादव (अंक: 174, फरवरी प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

(उल्लाला 13-15)

 

मेरी गिनती कब हुई, 
पढ़े-लिखों के बीच बाबा
मारे बैठा मन रहूँ, 
संयम रेखा खींच बाबा
 
समझ नहीं आता मुझे,
ज़रा तो हो तमीज़ बाबा
झाँकूँ किस गरेबाँ को
फटी कालर कमीज़ बाबा
 
सबसे पहले ये बता,
किन बातों की खीझ बाबा
दुनिया भी चलती रहे 
समझौतों पर रीझ बाबा
 
आओ छिपी व्यथा कहें
’डर' राहों की कीच बाबा
हम सुधरें युग बदलने,
पानी ज़रा उलीच बाबा
 
मुरझाए सब चेहरे
बदलो सारे बीज बाबा
गले-गले पहने सभी 
सदाचार ताबीज़ बाबा

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